Monday, 19 June 2017

ख्वाजा गरीब नवाज- मोईनुद्दीन चिश्ती अजमेर-ALL ABOUT KHWAJA E AJMER MOINUDDIN CHISHTI R.A- PART-1


                                           بسم الله الرحمان الرحیم 

हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन हसन अली अजमेरी रहमतुल्लाह अलैहि 537 हिजरी में खुरासान के सन्जर नामक गांव में पैदा हुए. ख्वाजा बुजुर्ग के वालिद माजिद का नाम सैयद गियासुद्दीन हसन है, वह आठवीं पुश्त में हजरत मूसा काजिम के पाते होते है। वालिदा माजिदा का नाम बीबी उम्मुलवरा उर्फ बीबी माहे नूर है जो चन्द वास्तों से हजरत इमाम हसन की पोती होती है। इसलिए आप बाप की तरफ से हुसैनी और माँ की तरफ से हसनी सैयद है।

ख्वाजा साहब शुरू से ही दुरवेशों, सूफियों और फकीरों की संगत में बैठते, उनका अदब करते और उनसे मुहब्बत रखते थे। एक रोज आप अपने बाग में पौधों को पानी दे रहे थे कि एक बुजुर्ग शेख इब्राहीम कन्दोजी र.अ.थे। ख्वाजा साहब की नजर जब उन पर पड़ी तो सब काम छोड़कर आपके पास आ गये और आपके हाथ को चूमा और बहुत अदब से एक सायादार पेड़ की छांव में लाकर बिठाया। और तो कोई सामान था नही मगर इन दिनो अंगूर का मौसम था और अंगूर के खुशनूमा गुच्छे लटक रहे थे। ख्वाजा साहब ने अंगूरो का एक पका हुआ गुच्छा तोड़कर उनको पेश किया और उनके सामने अदब से बैठ गये । अल्लाह वाले बुजुर्ग को आपकी यह अदा बहुत पसन्द आई और उन्होने खुशी से नोश फरमाये। बुजुर्ग की खुदा शनास नजरों से फौरन ताड़ लिया कि यह होनहार बच्चा राहे हक का तालिब है। उन्होने अपनी जेब से खली का एक टुकडा निकाला और उसको अपने दांतो से चबाकर ख्वाजा साहब के दहने मुबारक (मुख) में डाल दिया। हमारे ख्वाजा क्योंकि शुरू से ही दुरवेशों का अदब करते और फकीरों से मुहब्बत रखते थे, इसलिए इब्राहीम कन्दोजी र.अ. के दिये हुए खली के टुकडे को खा गये। फिर क्या था, आपका दिल दुनिया से उचट गया और वहम के सभी परदे हट गये। खली का वह टुकड़ा हलक से उतरना था कि आप रूहानियत की दुनिया में पहुच गये, दिल में एक जोशे हैरत पैदा हो गया, आंख खुली रह गई। जब आप उस हालत से बाहर आये तो अपने को तन्हा पाया। शेख इब्राहीम कन्दोजी र.. जैसे आये थे वैसे ही चल दिये।
शेख इब्राहीम कन्दोजी र.. तो चल दिये लेकिन हमारे ख्वाजा ने जो जलवा देखा था वह आपकी नजरों के सामने फिर रहा था और ऐसा नही था जिसको फरामोश किया जा सकता। वर बार-बार इसको देखने की ख्वाहिश करते। आपने हर मुमहनि सब्र और तहम्मुल से काम लिया मगर फिर भी दिल काबू में न रहा। इश्क की आग भड़क उठी और जब दीवानगी हद से बढ़ने लगी तो आपकी नजरों में दुनिया और इसकी दौक्लत हकीर नजर आने लगी। चुनाचे बाग और पवन चक्की को बेचकर, और जो कुछ नगद व सामान पास मौजूद था, राहे खुदा में फकीरों और बेसहारों में बांट दिया और थोड़ा सा जरूरी सामान साथ लेकर तलाशे हक में निकल पड़े।
शेख इब्राहीम कन्दोजी र.. ने जब से हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती र.. को इश्के इलाही की झलक दिखाई थी उसी वक्त से आपका दिन बेकरार था। और जब तालीम की हवा ने इश्क की आग का भझ़का दिया। इस तरह आपने एक दिन समरकन्द को भी छोड़ा और अल्लाह का नाम लेकर मगरीब (पश्चिम) की जानिब रवाना हो गये। मगरीब की सरजमीन बड़े-बड़े आरिफाने हक के मजारों से भरी पड़ी थी। और बड़े-बड़े खुदा रसीदा बुजुर्ग उस सरजमीन पर मौजूद थे, जहां कदम-कदम पर फैज के दरिया जारी थे। समरकन्द से एक रास्तर दक्षिण की तरफ बल्ख को जाता है। आप इसी रास्ते पर कामिल पीर की तलाश में चल पड़े मगर इस तमाम सफर में कोई पीरे कामिल न मिला और आप बराबर चलते रहे जैसे कोई गैबी कशिश आपको खींचते लिए जा रही हो। नेशापुर से कुच्छ  ही दूर चले थे कि कसबा हरवन में पहोंच गये।
कस्वा हारून एक छोटा-सा कस्बा था और इन दिनो वहां हजरत ख्वाजा शेख उस्मान तशरीफ़ फर्मा थे.
हजरत शेख उस्मान हारूनी र. महान औलियाओं में से थे और आपको फैज व बरकत की चर्चा दूर-दूर तक फैली हुई थी, हाजतमन्द और अल्लाह के चाहने वाले अपनी मुरादों की झोलियां भर-भर कर ले जाते थे।
हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज र.. के इश्क का जज्बा आखिकार आपको मंजिल पर ले आया, यानी आप कस्वा-ए-हारून में दाखिल हो गये। उस वक्त आपकी खुशी की इन्तिहा न रही क्योकि आपने अब चश्मा-ए-आबे बका को पा लिया था यानी पीरे कामिल को पा लिया था।
हमारे ख्वाजा र.. दूर से सफर करते हुए हारून पहुंचे थे इसलिए आपका जिस्म मुबारक गर्द आलूद (धूल युक्त) हो गया था और लिबास गुबार में अटा हुआ थो। आप बेकरा जरूर थे मगर चेहरे पर ताजगी और संजीदगी (गंभीरता) दिखाई देती थी। हजरत गरीब नवाज र.. ने हजरत ख्वाजा शेख उस्मान हारूनी र.. के दस्ते हम परस्त पर बैअत की और ख्वाजा उस्मान हारूनी र.. ने आपको अपने शागिर्दो में शामिल कर लिया

हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती एक मुद्दत से ही हजरत ख्वाजा उस्मान हारूनी र.अ. से अकीदत रखते थें अब इस कदर शेदाई हो गये कि हर वक्त सफर हो या कियाम  हो अपने गुरू की खिदमत में हाजिर रहते। उनका बिसतर, तकिया, पानी का मशकीजा अज्ञैर दूसरा जरूरी सामान अपने सर और कन्धों पर रखकर हमसफर (साथ-साथ) होते थे। हजरत ख्वाजा गरीब नवाज र.. बीस साल तक अपने पीर की खिदमत में रहकर अल्लाह तआला की इबादत करते रहे। और उसी अर्स में मारफत व हकीकत की सभी मंजिलें तय कर ली और फकीरी से अच्छी तरह वाकिफ हो गये


हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज र.. के इर्शादात अहले बसीरत के लिए बेश कीमत खजाना है। अल्लाह तआला हमें उनकों समझने और उन पर अमल करने की तौफीक अता फरमाये।
1. गुनाह करने से इतना नुक्सान नही होता जितना कि अपने किसी भाई को हकीर (तुच्छ) या जलील समझने से।
2.
फकीरी का मुस्ताहिक (लायक) वह शख्स होता है जो दुनिया-ए-फानी में अपने पास कुछ न रखे।
3.
बन्दे पर फकीर का शब्द उस वक्त लागू है कि जब आठ साल तक बायें हाथ का फरिश्ता जो बदी लिखने वाला है उसके आमालनामें में एक भी बदी न लिखे।
4.
खुदा की शनाख्त (पहचान) उस शख्स को होगी जो दुनिया वालों से अलग रहे और खुद को बड़ा न समझें।
5.
खामोश और गमगीन रहना आरिफों की एक अलामत (पहचान) है।
6.
पूरी दुनियां और कायनाते आलम को अपनी दो उंगलियों में देखना इरफान का एक दर्जा है।
7.
बुजुर्ग वह है जो अपना दिल दोनों जहान से उठा ले और हरदम आलमे गैब से लाखों तजल्लियां उस पर जाहिर हों और अल्लाह की राह में वह अल्लाह तआला के सिवा किसी से मदद न चाहे।
8.
नमाज मोमिनीन को अल्लाह तआला से मिलायेगी, इसकी हिफाजत पूरी तरह करनी चाहिए।
9.
हर रोज आसमान से दो फरिश्ते उतरते है। उनमें से एक पुकारता है कि जिससे फर्जे इलाही जान-बूझकर छूट गया वह अल्लाह तआला की जमानत से बाहर हो गया। फिर दूसरा कहता है कि जिसने रसूलुल्लाह स... की सुन्नत को छोड़ा वह कियामत के रोज शफाअत से महरूम रहेगा।
10.
जो शख्स पांचो वक्त पाबन्दी के साथ नमाज अदा करता है कियामत के दिन उसकी नमाज उसकी हिफाजत और निगहबानी करेगी।
11.
जो शख्स फज्र की नमाज पढ़ कर सूरज उगने तक उसी जगह बैठा रहे और नमाजे इशाराक पढ़ कर उठे तो हक तआला उसे मय सतर हजार आदमियों के जो उसके अह्रल (योग्य) हों बख्श देता है।
12.
पांच चीजो का देखना इबादत है, चाहे वे चीजे अलग्7अलग क्यों न देखी जायें-
(1)
मां-बाप का देखना
(2)
कुरआन मजीद का देखना
(3)
अल्लाह वालों को देखना
(4)
खाना-ए-काबा का देखना
(5)
अपने पीरे तरीकत का देखना
13.
बाज (कुछ) बुजुर्ग ने सुलूक के सौ दर्जे मुकर्रर किए है। उनमें सत्तर दर्जे तय करने के बाद कश्फ व करामात का रूतबा हासिल होता है। जो शख्स अपने आपको कश्फ व करामात के दर्जे में जाहिर नही करता वह बाकी तीस दर्जे भी तय कर जाता है। बस, बुजुर्गी के लिए जरूरी है क वह अपने आपको उस दर्जे में जाहिर न करें और पूरे सौ दर्जे तय कर लें।
14.
हमारे खानदाने सुलूक के पन्द्रह दर्जे है। पांचवां दर्जा कश्फ व करामात का है। हमारे बजुर्गो ने वसीयत की है कि पांचवें दर्जे पर ही न ठहरे बल्कि पूरे पन्द्रह दर्जे हासिल कर ले।
15.
मुहब्बत के चार दर्जे है-
(1)
हमेशा अललाह तआला का जिक्र करना।
(2)
जिक्र इलाही को खूब दिल लगाकर करना और उसके जिक्र में खुश रहना।
(3)
वह खूबी पैदा करना जो दुनियावी मुहब्बत से अलग हो।
(4)
हमेशा रोते रहना।
16.
जो शख्स ाहता है कियामत के सख्त (भयानक) अजाब से महफूज रहे तो उसके लिए लाजमी है कि वह मुसीबत में रहने वालों की फरियाद सुने, जरूरतमन्दों की जरूरत पूरी करें और भूखों को पेट भर कर खिलायें।
17.
चार काम नफ्स के लिए जीनत (शोभा) है-
(1)
भूखे को खाना खिलाना।
(2)
मुसीबत जदा की मदद करना।
(3)
जरूरतमन्दों की जरूरत पूरी करना।
(4)
दुश्मन से मेहरबानी और अच्छे सुलूक से पेश आना।
18.
जिस शख्स में तीन खासियतें हों खुदा उसको दोस्त रखता है-
(1)
दरिया जैसी सखावत
(2)
सूरज जैसी शफ्कत (भलाई)
(3)
जमीन जैसी तवाजों।
19.
नेक काम करने से बेहतर नेकों की सोहबत और बुरे काम करने से बदवर बुरों की सोहबत है।
20.
सोहबत का असर जरूर होता है। बुरी सोहबत से बुरा असर और नेक सोहबत से अच्छा असर होता है।
21.
हाजत रवाई के लिए सूरः फातिहा पढ़ना बेहद फायदेमन्द साबित हुआ है।
22.
नदी नाले औश्र दरिया के पानी में आवाज होती है लेकिन जब वह समुद्र से जाकर मिल जाते है तो कामिल सुकून हो जाता है, इसी मिसाल को सुलूक की मन्जिलें मान लेना चाहिए।
23.
हर दौरे में दुनिया के अन्दर खुदा के सैकड़ो ऐसे मक्बूल व प्यारे बन्दे होते हैं जिन्हें कोई नहीं जानता और वह गुमनामी के गोशे में इन्तिकाल (देहान्त) फरमा जाते है। अतः दुनिया को औलियाओं से खाली मत समझों।
24.
खुदा की पहचान उसे हागी जो लोगों से अलग-थलग रहे। दुनियादार बुजुर्ग होने का दावा न करें।
25.
बुजुर्गी की निशानी यह है कि खुदा के सिवा तमाम चीजों की मुहब्बत दिल से निकाल दें।
26.
सिर्फ दिल और जिस्म से काबे का तवाफ न करें क्योकि आरिफ (खुदा शनास) वह है जिसका दिल अर्श और हरमैन के चक्कर लगाता रहे।
27.
खामोश और गमगीन रहना बुजुर्गी की एक निशानी है।
28.
तमाम इबादतों से ज्यादा अफ्जल (उत्तम) लाचारों और मजलूमों की फरियाद को पहुचना है।
29.
आरिफ हर वक्त इष्क की आग में डूबा रहता है। अगर खड़ा है तो दोस्त ही के इश्क में खड़ा है, बैठा है तो उसी का जिक्र कर रहा है सोया है तो ख्याले दोस्त में बेखबर है और जागता है तो उसी के ख्याल में होता है।
30.
आरिफ पर एक हाल होता है, उस वक्त वह कदम उठाया करते है। एक कदम में हिजाबे अजमत से गुजर कर हिजाबे किब्रीयाई तक पहुंचते है और दूसरे कदम में वापस आ जाते है। यह बयान फरमाते हुए हजरत ख्वाजा गरीब नवाज र0 0 के आसू जारी हो गये।
31.
आरिफ वह है, तो कुछ चाहे सामने आ जाये और कुछ पूछे उसका जवाब मिले।
32.
बद बख्त वह है जो गुनाह करे और उम्मीद रखे कि मै मकबूल बन्दा हूं।
33.
सखावत करना नईम (नेमत वाने वाला ) होने की चाबी है।
34.
दुरवेश वह है जो हाजमन्दों को महरूम (निराश) वापस न करे।
35.
राहे मुहब्बत में जीत उसकी होती है जो दोनों जहान से बेताल्लुक हो जाये।
36.
तवक्कुल यह है कि लोगों के रंज व मुसीबत उठाए और किसी से शिकायत और इज्हार न करें।
37.
जितना ज्यादा अल्लाह में ध्यान होगा उतना ही ज्यादा हैरत बढे़गी।
38.
इल्म (ज्ञान) दरिया की धारा है और अल्लाह का ध्यान दरिया की एक लहर है, फिर खुदा कहां और बन्दा कहां। इल्म खुदा को है और इरफान (अल्लाह का ध्यान) बन्दे को है।
39.
अल्लाह में ध्यान रखने वाले सूरज की तरह रोशन रहते हैं और तमाम दुनिया को रोशन रखते है।
40.
आरिफ मौत को दोस्त, आराम को दुश्मन और अल्लाह के जिक्र को पयारा रखते है।
41.
जो शख्स वुजू करके सोता है उसकी रूह अर्श के नीचे सैर करती रहती है।
42.
आशिकों का दिल मुहब्बत की आग से जला हुआ होता है और जो कुछ उसके अन्दर आता है यह आग उसको भी जलाकर राख कर देती है।
43.
मुहब्बत में अदना  दर्जा यह है कि अल्लाह की सिफात  उसमें दिखाई दे और आला दर्जा यह है कि अगर उस पर कोंई दावा करे तो उसको उलटा मुजरिम बना दे।
44.
दुरवेशों के लिए सबसे बड़ी नेमत यह है कि दुरवेशों के पास बैठें और सबसे बड़ा नुक्सान यह है कि दुरवेशों से दूर रहे।
45.
कोई शख्स इबादत से अल्लाह का कुर्ब (निकटता) हासिल नही कर सकता जब तक नमाज न पढ़े क्योकिं नमाज ही बन्दे को अल्लाह से मिलाएगी ।
46.
चार खूबियां नफ्स की जौहर हैं-
(1)
गरीबी में अमीरी का इज्हार करना।
(2)
भूख के वक्त सेरी का इज्हार करना।
(3)
गम के वक्त खुश रहना।
(4)
दुश्मन के साथ दोस्ती करना।
47.
नमाज अल्लाह के कुर्ब का जीना (सीढ़ी) है।
48.
झूठी कमस खाने वाले के घर से बरकत जाती रहती है और वह बर्बाद हो जाता है।
49.
अलहम्दु शरीफ कसरत से पढ़ना हाजतों को पूरी करने के लिए उत्त्म इलाज है।
50.
मौत से पहले मौत की तैयारी करो और मौत को हर वक्त सर पर रखों।
51.
खुदा जिसको दोस्त रखता है उसके सर पर बलाओं की बारिश करता है।
52.
कुरआन पाक का देखना सवाब है, पढ़ना सवाब है, अगर एक शब्द पर निगाह पड़े तो दस बदियां दूर हो जायें और दस नेकियां लिखी जायें। आंखों की रोशनी बढ़े और उसकी आंख पर कभी कोई मुसीबत न हो।
53.
काबतुल्लाह की जियारत से एक हजार साल की इबादत का सवाब मिलता है। हज का सवाब अलग है।
54.
आलिम की जियारत और दुरवेशों की दोस्ती से बरकत हासिल होती है।
55.
कमाले ईमान में तीन चीजें है-
(1)
खौफ
(2)
रजा (उम्मीद)
(3)
मुहब्बत
56.
मां-बाप का मुंह देखना औलाद के लिए इबादत है। जो लड़का मां-बाप की कदम बोसी हासिल करता है उसके पिछले गुनाह माफ कर दिए जाते है। ख्वाजा बायजीद बुस्तामी र0 0 ने फरमाया कि मैनं जितने भी मर्तबे पाए अपने मां-बाप से पाये।
57.
जिस किसी ने जो कुछ पाया पीर की खिदमत से पाया। बस मुरीद को चाहिए कि थेड़ा भी पीर के फरमान से आगे न बढ़े और पीर जो कुछ उसको तलकीन (शिक्षा) करे उस पर कान धरे और अमल करे।
58.
जो शख्स आबेदस्त (पाकी) के बाद वुजू में उंगलियो में खिलाल करता रहे उसकी उंगलियां दोजख की आग से महफूज रहेगी।
59.
वुजू में हर अंग को तीन बार धोना सुन्नत है और उसकी कमी या ज्यादती खलल है।
60.
मस्जिद में जाओ तो दायां पैर पहले अन्दर रखो जब वापस आबो तो बायां पैर पहले निकालो। (सुन्न्त)
61.
नापाकी आदमी के बदन में बाल-बाल के नीचे होती है इसलिए गुस्ल (स्नान) के वक्त हर बाल में पानी पहुंचना चाहिए। अगर एक बाल भी सूखा रहे तो पाकी न होगी।
62.
आदमी का मुंह पाक होता है चाहे मोमिन हो या काफिर।
63.
नमाज एक ओहदा (पद) है अगर इस ओहदे की सलामती के साथ जिम्मेदारी पूरी की तो निजात (मुक्ति) है, वरना खुदा के सामने शर्मिन्दगी की वजह से मुंह सामने न होगा।
64.
अरबाबे सुलूक की सही तौबा तीन चीजों से पैदा होती है-
पहला- रोजा रखने की नीयत से कम खाना।
दूसरा- महबूब के जिक्र की गरज से कम बोलना।
तीसरा- इबादत करने की गरज से कम सोना।
65.
तसव्वुक में न रस्में है कि जिनकी पाबन्दी हो सके और न कुछ इल्म है जिनका पढ़ कर हासिल करना आसान हो बल्कि यह मुहब्बत और तरीकत वालों के नजदीक तसव्वुफ खुदा के बन्दों के साथ खुशी व नर्मी से पेश आना है।
66.
आरिफ वही है जिसमें तीन बाते पायी जाएं। पहली-खौफे खुदा, दूसरी-ताजीम, तीसरी हया (लज्जा)।
67.
अगर नमाज के अरकान ठीक तरह से अदा न हुए हो वह पढ़ने वाले के मुंह पर मार दी जाती है। (हदीस)
68.
खुदा-ए-तआला ने किसी इबादत के बारे में इतनी ताकीद नही फरमाई जितनी नमाज के लिए।
69.
जिस कदर दिल लगाकर और सुकून से नमाज अदा करेगा उतना ही खुदा तआला की नजदीकी हासिल होगी।
70.
कब्रस्तान इबरत (नसीहत) की जगह है वहां जाकर हंसना, कहाकहा लगाना, खाना-पीना या कोई और दुनियावी काम नही करना चाहिये।
71.
जो शख्स इबादत नही करता वह हराम रोजी खाता है।



 TO BE CONTINUED..... 

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ख्वाजा गरीब नवाज- मोईनुद्दीन चिश्ती अजमेर

Urdu Shayri by Sahib Ahmedabadi

Sahib Ahmedabadi