Wednesday, 31 May 2017

सुरह अल फलक- सुरह अन नास हिंदी में तर्जुमा और तफसीर- SURAH AL FALAK & SURAH AN NAAS HINDI TRANSLATION AND TAFSEER

                                      



क़ुरआन करीम की ये आख़िरी दो सूरतें मुअव्वज़तैन कहलाती हैं। इन दोनों सूरतों के मक्की या मदनी होने में मुफ़स्सरीन का इख़्तिलाफ हैलेकिन जमहूर मुफ़स्सरीन की राए है कि ये दोनों सूरतें मदनी हैं और ये दोनों सूरतें उस वक़्त नाज़िल हुईं जब एक यहूदी “लबीद बिन आसम”ने नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर जादू करने की कोशिश की थी और उसके कुछ असरात आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ज़ाहिर भी हुए थे। अहादीस से साबित है कि इन सूरतों की तिलावत और उनसे दम करना जादू के असरात दूर करने और दीगर दुनियावी आफ़ात से बचने के लिए बेहतरीन अमल है। हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इन दोनों सूरतों की तिलावत करके अपने मुबारक हाथों पर दम करते और फिर उन हाथों को पूरे जिस्म पर फेर लेते थे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सहाबाए किराम को भी इन सूरतों को मुख़तलिफ औक़ात में पढ़ने की तालीम देते थे। ग़रज़ कि इन दोनों सूरतों को जादूनज़रे बद और जिस्मानी व रूहानी आफ़तों के दूर करने में बड़ी तासीर है और हर शख़्स इनके फ़ायदे और बरकात को हासिल करने का मोहताज है।

(कुल) “कहो”— इस इरशाद के अव्वलीन मुख़ातब तो हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं, मगर क़यामत तक आने वाले तमाम इन्सान व जिन्न भी इसके मुख़ातब हैं।
(अऊज़ु) “मैं पनाह मांगता हूँ” — पनाह मांगने से मुराद किसी चीज़ से ख़ौफ महसूस करके अपने आपको उससे बचाने के लिए किसी दूसरे की हिफ़ाज़त में जाना। मोमिन ऐसी तमाम आफ़तों जिनको दूर करने पर वो ख़ुद अपने आपको क़ादिर नहीं समझतासिर्फ़ अल्लाह तआला की तरफ रुजू करता है और उसी की पनाह मांगता है।
(फलक़) के लफ़्ज़ी माना फटने के हैं, यहाँ सुबह का नमूदार होना मुराद है। (रब्बिलफ़लक़) से अल्लाह जल्ला जलालुहू मुराद हैं। (मिन शर्रि मा ख़लक़) में सारी मख़लूक़ दाख़िल है, यानी मैं अल्लाह की पनाह मांगता हूँ सारी मख़लूक के शर से। यहाँ तीन चीज़ों के शर से ख़ास तौर से पनाह मांगी गई है। (मिन शर्रि ग़ासिक़िन इज़ा वक़ब, वमिन शर्रिंन नफ़्फ़ासाति फ़िल उक़द) और (वमिन शर्रि हासिदिन इज़ा हसद) और अँधेरी रात के शर से जब वो फैल जाए और उन जानों के शर से जो (गंडे की) गिरहों में फूँक मारती हैं और हसद करने वाले के शर से जब वो हसद करे। अँधेरी रात के शर से ख़ास तौर से इसलिए पनाह मांगी गई है कि आम तौर पर जादूगरों की कार्रवाइयाँ रात के अँधेरों में हुआ करती हैं। (नफ़्फासात) में मर्द व औरत दोनों दाख़िल हैं, जादूगर मर्द हो या औरत धागे के गंडे बना कर उसमें गिरह लगाते जाते हैं और उन पर कुछ पढ़ पढ़ कर फूंकते रहते हैं, उनके शर से पनाह मांगी गई है। नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर जादू रात में किया गया था, गिरहें बांध कर किया गया था और आपसे हसद की बुनियाद पर किया गया था, इसलिए इन तीन चीज़ों से ख़ासतौर पर पनाह मांगी गई। (हसद) के मायने हैं किसी की नेमत व राहत को देख कर जलना और ये चाहना कि उससे ये नेमत ख़त्म हो जाए चाहे उसको भी हासिल न हो। हसद हराम और गुनाहे कबीरा है। सूरह अल फलक़ में अल्लाह की एक सिफत रब्बुल फलक़ ज़िक्र करके तीन चीज़ों से पनाह मांगी गई थी। सूरह अन्नास में अल्लाह तआला की तीन सिफात (रब्बिन्नास , मलिकिन्नास) और (इलाहिन्नास) ज़िक्र करके एक चीज़ से पनाह मांगी गई है और वो है शैतान के वसवसे डालने से। (वस्वासिल ख़न्नास) वसवास के मायने बार बार वसवसा डालने के हैंऔर ख़न्नास के मायने ज़ाहिर होने के बाद छुपने या आने के बाद पीछे हट जाने के हैं। यानी वो बार बार वसवसा अन्दाज़ी की कोशिश करता है, एक बार नाकामी पर दोबारा,और बार बार आता रहता है।


It is mentioned in the Hadith that Prophet Muhammed Salla Allahu ta'ala 'alayhi wa Sallam said to a Sahaba Uqbah bin Aamir Radi Allahu anhu: "Should I not teach you two Surahs which are beautiful in recitation?" Then he taught him the above two Surahs.Prophet Muhammed Salla Allahu ta'ala 'alayhi wa Sallam then advised him to continue reciting them for he would never read any Surahs that are parallel (in beauty and excellence) to these two.


According to a hadith,Prophet Muhammed
 Salla Allahu ta'ala 'alayhi wa Sallam used to invoke Allah Subhanahu wa Ta'ala's protection against the mischief of Jinn and the evil gaze (nazr) of men, (using various words) until Allah Subhanahu wa Ta'alaazzawajal revealed these two Mu'aw-wazatain on him. So he held firmly to these and discarded all others.


According to a Hadith no one ever begged (of Allah
 Subhanahu wa Ta'ala) with the likeness of these Surahs and no one ever sought refuge (in Allah Subhanahu wa Ta'ala) with the likeness of these Surahs.
According to one riwaayah "recite these two Surahs when you go to sleep and when 'you wake up".


A hadith says that Prophet Muhammed
 Salla Allahu ta'ala 'alayhi wa Sallam said:"Recite Qul A'oozu birabbil falaq", for you are unable to recite any other Surah which is very much loved and speedily accepted by Allah Subhanahu wa Ta'ala as this Surah. Thus, as far as you can help it, do not forsake it."
According to a different riwaayah of the same Hadith, the following words appear: "You are unable to recite anything that reaches Allah
 Subhanahu wa Ta'ala so speedily as does Qul A'oozu birabbil falaq".


According to another Hadith,Prophet Muhammed
 Salla Allahu ta'ala 'alayhi wa Sallamsaid:"Haven't you seen the (beautiful and strange) verses which were revealed during the night? You will not find their like at all. They are Qul A'oozu birabbil falaq and Qul A'oozu birabbin naas

TARAWEEH PRAYER- DUA AND HISTORY OF TARAWEEH PRAYER

               بسم الله الرحمان ال رحیم


तरावीह मर्द व औरत सब के लिए सुन्नत-ए-मौअक्कदा है इसका छोड़ना जाइज़ नहीं। ख़ुद हुज़ूर ने भी तरावीह पढ़ी और उसे बहुत पसंद फ़रमाया। सही मुस्लिम में अबू हुरैरा से मरवी इरशाद फ़रमाते हैं जो रमज़ान में क़ियाम करे ईमान की वजह से और सवाब तलब करने के लिए उसके अगले गुनाह बख़्श दिये जायेंगे यानि सग़ीरा (छोटे-छोटे गुनाह) ।

फिर हुज़ूर(स.अ.व) ने इस अन्देशे से कि उम्मत पर फ़र्ज़ न हो जाये तर्क फ़रमाई ।  फिर फ़ारूक़े आज़म(रदी) रमज़ान में एक रात मस्जिद में तशरीफ़ ले गये और लोगों को अलग-अलग नमाज़ पढ़ते पाया। फ़रमाया मैं मुनासिब जानता हूँ कि इन सबको एक इमाम के साथ जमा कर दूँ तो बेहतर हो। सब को एक इमाम उबई इब्ने कअब(रदी)के साथ इकट्ठा कर दिया फिर दूसरे दिन तशरीफ़ ले गये तो देखा कि लोग अपने इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ते हैं तो फ़रमाया यह अच्छी बिदअत है।

उरवा बिन जुबैर रदी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है की आयशा रदी अल्लाहु अन्हा ने फ़रमाया एक बार (रमज़ान की ) आधी रात में रसूल-अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिद में तशरीफ़ ले गए और वहां तरावीह की नमाज़ पढ़ी सहाबा रदी अल्लाहु अन्हुमा भी आपके साथ नमाज़ में शामिल हो गए सुबह हुयी तो उन्होंने उसका चर्चा किया
फिर दूसरी रात में लोग पहले से भी ज़्यादा शामिल हो गए और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ नमाज़ पढ़ी दूसरी सुबह को और ज़्यादा चर्चा हुआ
तो तीसरी रात उस से भी ज़्यादा लोग जमा हो गए आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने (उस रात भी ) नमाज़ पढ़ी और लोगों ने आपकी पैरवी की.
चौथी रात को ये आलम था की मस्जिद में नमाज़ पढने आने वालों के लिए जगह भी बाकी नहीं रही ( मगर उस रात आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नमाज़ के लिए बहार नहीं आये )
बल्कि सुबह (फजर की) नमाज़ के लिए तशरीफ़ लाए और जब नमाज़ पढ़ इ तो लोगों की तरफ मुतवज्जा होकर शहादत के बाद फ़रमाया अम्मा बाद तुम्हारे यहाँ जमा होने का मुझे इल्म था लेकिन मुझे इसका खौफ हुआ की ये नमाज़ तुम पर फ़र्ज़ न हो जाए और फिर तुम उसे अदा न कर सको और जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफ़ात हुयी  तो उसके बाद भी यही केफियत रही ( लोग अलग अलग तरावीह पढ़ते रहे )
सही बुखारी जिल्द 3,  हदीस : 2012
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English Translation:
Narrated Urwa Radi Allahu Anhu That he was informed by Aisha Radi Allahu Anha, Prophet Sallallahu Alaihi Wasallam went out in the middle of the night and prayed in the mosque and some men prayed behind him. In the morning, the people spoke about it and then a large number of them gathered and prayed behind him (on the second night). In the next morning the people again talked about it and on the third night the mosque was full with a large number of people. Allah's Messenger () came out and the people prayed behind him. On the fourth night the Mosque was overwhelmed with people and could not accommodate them, but the Prophet () came out (only) for the morning prayer. When the morning prayer was finished he recited Tashah-hud and (addressing the people) said, "Amma ba'du, your presence was not hidden from me but I was afraid lest the night prayer (Qiyam) should be enjoined on you and you might not be able to carry it on." So, Allah's Apostle passed away and the situation remained like that (i.e. people prayed individually). "


Sahih Bukhari, Vol. 3, Book 32, Hadith 229

Urwa bin Zubair Radi Allahu Anhu se rivayat hai ki Ayesha radi allahu Anha ne farmaya ek baar (Ramadan ki ) aadhi raat mein Rasool-Allah Sallallahu Alaihi Wasallam masjid mein tashreef le gaye aur wahan taraweeh ki namaz padhi, Sahaba Radi Allahu Anhuma bhi aapke saath namaz mein shamil ho gaye, subah huyee to unhone uska charcha kiya phir dusri raat mein log pahley se bhi zyada shamil ho gaye, aur Aap Sallallahu Alaihi Wasallam ke saath namaz padhi.
Dusri subah ko aur zyada charcha hua to teesri raat us se bhi zyada log jama ho gaye ,
Aap Sallallahu Alaihi Wasallam ne (us raat bh) namaz padhi aur logo ne aapki pairwi ki,
Chothi raat ko ye aalam tha ki masjid mein namaz padhney aaney walo ke liye jagah bhi baqi nahi rahi
( magar us raat Aap Sallallahu Alaihi Wasallam Namaz ke liye bahar hi nahi aaye)
bulki subah namaz ke liye tashreef laye aur jab namz padh li to logo ki taraf mutwajja hojar shahadat ke baad farmaya Amma baad tumhare yahan jama hone ka mujhe ilm tha lekin mujhe iska khauf hua ki ye namaz tum par farz na ho jaye aur phir tum usey ada na kar sako Aur jab Aap Sallallahu Alaihi Wasallam ki wafat huyee uske baad bhi yahi kaifiyat rahi ( log alag alag taraweeh padhte rahe )
Sahih Bukhari, Vol 3, 2012

तरावीह के ज़रूरी मसाइल
  • ज़्यादातर उलमा-ए-किराम के नज़दीक तरावीह की बीस रकअतें हैं और यही अहादीस से साबित है।
  • इसका वक़्त इशा के फ़र्ज़ों के बाद से तुलू-ए-फ़ज्र तक है।
  • तरावीह वित्र से पहले भी हो सकती है और बाद में भी।
  • अगर किसी शख़्स की तरावीह की कुछ रकअतें बाक़ी रह गईं और इमाम ने वित्र पढ़ना शुरू कर दिया तो इमाम के साथ वित्र पढ़ लें फिर बाक़ी अदा कर लें जबकि फ़र्ज़ जमाअत से पढ़े हों यह अफ़ज़ल है,अगर तरावीह पूरी करके वित्र तन्हा पढ़े तो भी जाइज़ है।
  • तरावीह के लिये पहले इशा की नमाज़ पढ़ना ज़रूरी हैं|
  • अगर भूल से इशा की नमाज़ बिना तहारत पढ़ ली और तरावीह व वित्र तहारत के साथ तो इशा व तरावीह फिर पढ़ें वित्र हो गये।
  • मुस्तहब यह है कि तिहाई रात तक देर करें, आधी रात के बाद पढ़ें तब भी कराहत नहीं।
  • तरावीह की क़ज़ा नहीं यानि अगर छूट गईं और वक़्त ख़त्म हो गया तो नहीं पढ़ सकते।
  • तरावीह की बीस रकअतें दस सलाम से पढ़ें यानि हर दो रकअत पर सलाम फेरें और अगर किसी ने बीसों रकअतें पढ़कर आख़िर में सलाम फेरा तो अगर हर दो रकअत पर क़ादा करता रहा (यानि तशह्हुद पढ़ता रहा) तो हो जायेगी मगर कराहत के साथ और अगर क़ादा न किया था तो सिर्फ़ दो रकअत तरावीह हुईं ।
  • एहतियात यह है कि जब दो रकअत पर सलाम फेरें तो हर दो रकअत पर अलग-अलग नीयत करें और अगर एक साथ बीसों रकआत की नीयत कर ली तो भी जाइज़ है।
  • तरावीह में एक बार क़ुरआन पाक ख़त्म करना सुन्नत-ए-मौअक्कदा है।
  • अगर क़ुरआन पाक पहले ख़त्म हो गया तो तरावीह आख़िर रमज़ान तक बराबर पढ़ते रहें क्योंकि यह सुन्नत-ए-मौअक्कदा है।
  • क़िरात और अरकान की अदायगी में जल्दी करना मकरूह है, तरतील ( यानि ठहर-ठहर कर) बेहतर है। इसी तरह अऊ़ज़ुबिल्लाहि व बिस्मिल्लाह को भी इत्मिनान से पढ़ें और तस्बीह वग़ैरा का छोड़ देना भी मकरूह है।
  • हर चार रकआत पर इतनी देर तक बैठना मुस्तहब है जितनी देर में चार रकअतें पढ़ें। बीसों रकअतें पढ़ने के बाद अगर भारी हो तो न बैठें।
  • तरावीह में हर चार रकआत एक “तरवीहा” है। इस तरह बीस रकआत में पाँच तरवीहा हुईं ।
  • हर चार रकअत के दरमियान जब बैठें चाहे ख़ामोश रहें या कलिमा, दुरूद शरीफ़ पढ़ते रहें, तिलावत करें या चार रकअतें तन्हा नफ़्ल पढ़ें जमाअत से मकरूह है।
  • हर चार रकअत तरावीह के बाद बैठ कर नीचे दी हुई तस्बीह पढ़ें।

Sunday, 28 May 2017

IMPORTANCE OF FASTING IN RAMADAN- ROZE KI EHMIYAT

                                   بسم الله الرحمان ال رحیم 


Maahe ramzaan ki  khususiyat ye  hai ke Allaah azzawajal ne iss mahine mein Quran-e-Paak naazil farmaya, Chunanche Allaah azzawajal Quran mein irshaad farmata hai;

 Ramzaan ka mahina, Jisme Quran utaara, Logon ke liye hidaayat aur rehenumayi aur faisle ki roshan batein, Toh tumme jo koyi ye mahine paaye zarur uske Roze rakhe aur jo bimaar ya safar me ho toh utne Roze aur dino me, Allaah azzawajal tumpar Aasaani chahata hai aur tum par dushwari nahi chahata aur issliye ke tum ginti poori karo aur Allaah ki badaayi bolo iss par ke usne tumhe hidaayat ki  aur kahe tum haq guzaar ho.

1) Ek riwaayat ke mutaabik arsh uthane waale farishte rozedaar ki duwa par aameen kehete hai.

2)   Aur ek riwaayat ke mutaabik maahe ramzaan ke rozedaaron ke liye dariya ki machliyan iftaar tak dua-e-magfirat karti reheti hai.

3)    Jab maahe ramzaan ki Pehli shab aati hai toh aasmaano aur Jannat ke darwaze khool diye jaate hai aur aakhiri raath tak bandh nahi hote.

4)     Maahe ramzaan me nafl ka sawaab farz ke baraabar aur farz ka sawaab 70 gunah badaa diya jaata hai.

5)    Jo koyi banda iss maahe mubaarak ki kisi bhi raath mein namaaz padhta hai toh Allaah azzawajal uske har sajde ke badle mein uske liye 1700 nekiyan likhta hai aur uske liye jannath mein surkh yaqut ka ghar bana tha hai. Jiss mein 70,000 darwaaze honge aur har darwaaze ke dono pat sone ke bane honge jinn me yaqute surkh jade honge.

6)   Jo koyi maahe ramzaan ka pehla roza rakhta hai toh Allaah azzawajal mahine ke aakhiri din tak uske gunah maaf farmadeta hai aur dusre ramzaan tak uske liye kaffara hojaata hai aur

7)     Har woh din jisme ye roza rakhega uss har roze ke badle mein usse 1000 sone ke darwaazon waala mahal jannat mein ataa hoga aur uske liye subho se shaam tak 70,000 farishte dua-e-magfirath karte rahenge.

8)     Raath aur din mein jab bhi woh sajda karega uss har sajde ke badle usse jannat mein ek ek aisa darakht ataa kiya jayega ke har uske neeche ek ghud sawaar 100 baras tak bhi chale phir bhi uss ek darakht se dusre sire tak na pahunch sake.

9)   Baaz ulama farmate hai ke jo maahe ramzaan me marjaaye uss se sawaalaat-e-Qabr nahi hote.

10)     Qiyaamat mein maahe ramzaan aur Quran rozedaaron ki shafa’at karenge ke maahe ramzaan toh kahega ke Maula azzawajal maine isko din mein khaana peene se rooka tha aur quran arz karega ke Ya Rab azzawajal maine usko raath mein tilaawate-wa-taraaweeh ke zariye soone se rooka.

11)  Jab maahe ramzaan ki Pehli raath hoti hai toh Allaah azzawajal apne makhluq ke taraf nazar farmaata hai aur jab Allaah azzawajal kisi bande ke taraf  nazar farmaye toh usse kabi azaab nadega.

12)   Har rooz 10 laakh gunehgaaron ko jahannam se aazaad farmaata hai 29 raath hoti hai toh mahine bhar mein jitne aazaad kiye unke majmu’aa ke baraabar uss ek raath mein aazaad karta hai.

13)    Phir jab Eid-ul-fitr ki raath aati hai malayika khushi karte hai aur Allaah apne noor ki khaas tajalli farmaata hai aur farishte se farmaata hai aye giroh malayika, unko poora poora ajr diya jaaye Allaah farmaata hai main tumhe gawah karta houn ke maine unn sab ko bakshdiya.



Sarkaare Madina Swallallaahu alaihi wa sallam ne maahe sha’baan ke aakhiri din bayan farmaya (bayan ka maffum):

1.   Aye loogon tumhaare paas azmatwaala barkatwaala mahina aaya woh mahina  jis mein ek raath aisi bhi hai jo 1000 mahino se behtar hai.

2.   Iss maahe mubaarak ke roze Allaah azzawajal ne farz kiye aur iss ki raath mein qiyaam sunnat hai.

3.   Jo iss mein neki ka kaam kare toh aisa hai jaisa aur kisi mahine mein farz adaa kiye, aur iss mein jis ne farz adaa kiye toh aisa hai jaisa aur dino mein 70 farz adaa kiye.

4.   Ye mahina sabar ka hai aur sabar ka sawaab Jannat hai.

5.   Ye mahina mu’asath(gamkhwari aur bhalayi) ka hai aur iss mahine mein momineeen ka rizq badhaya jaata hai .

6.   Jo iss mein rozadaron ko iftaar karaaye(Ek ghunt dhood ya paani ya ek khajur se iftaar karaye) uss ke gunahon ke liye magfirath hai aur uss ki gardan aag se aazaad kardi jayegi aur iss iftaar karane waale ko waisahi sawaab milega jaisa roze rakhne waale ko milega. Bagair iske ke uske ajar mein kuch kam ho.

Hadith: jo ek din Roza rakhe Allah ki raah mein to Allah uske munh (face) ko sattar (70) baras ki raah tak dojakh se dur kar deta hai 
Abu Said khudri radi allahu anhu se rivayat hai ki Rasool-Allah Sallallahu-Alaihi-Wasallam ne farmaya ki jo ek din Roza rakhe Allah ki raah mein to Allah uske munh (face) ko sattar 70 baras ki raah tak dojakh se dur kar deta hai 
Sahih Muslim , Vol3, 2713 

अबू सईद खुदरी रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सललल्लाहू-अलैही-वसल्लम ने फरमाया की जो एक दिन रोज़ा रखे अल्लाह की राह में तो अल्लाह उसके मुँह को सत्तर (70) बरस की राह तक दोजख से दूर कर देता है 
     सही मुस्लिम , जिल्द 3, 2713

 अबू हुरैरा रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सललल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया रोज़ा दोजख से बचने के लिए एक ढाल है इसलिए ( जो रोज़ेदर हो) वो ना तो बीवी से हमबिस्तरी करे और ना फ़हाश (बुरी) और जहलत की बातें करे और अगर कोई शख्स उस से लड़े या उसे गाली दे तो उसका जवाब सिर्फ़ ये कहना चाहिए की मैं रोज़ेदर हूँ दो बार (कहे) , उस ज़ात की कसम जिसके हाथ में मेरी जान है रोज़ेदर के मुँह की बू अल्लाह के नज़दीक मस्क की खुश्बू से भी ज़्यादा पसंदीदा और पाकीज़ा है ( अल्लाह सुबहानहु फरमाता है) बंदा अपना खाना पीना और अपनी शहवात मेरी लिए छोड़ता है रोज़ा मेरे लिए है और मैं ही इसका बदला दूँगा और नेकियों का सवाब भी असल नेकी के 10 गुना होता है
सही बुखारी , जिल्द 3, 1894

✦ अबू हुरैरा रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सललल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया अगर कोई शख्स (रोज़ा रखकर भी) झूठ बोलना और दगाबाज़ी करना ना छोड़े तो अल्लाह सुबहानहु को उसकी कोई ज़रूरत नही की वो अपना खाना पीना छोड़ दे
सही बुखारी, जिल्द 3, 1903



Hadith: Because of one fast Allah would remove, his face farther from the Fire (of Hell) to the extent of seventy years'distance

✦ Abu Sa'id al Khudri (Allah be pleased with him) reported Allah's Messenger Sal-Allahu Alaihi Wasallam as saying: Every servant of Allah who observes fast for a day in the way of Allah, Allah would remove, because of this day, his face farther from the Fire (of Hell) to the extent of seventy years' distance. 
Sahih Muslim Book 006, 2570

Narrated Abu Huraira Radi Allahu Anhu :Allah's Apostle Sallallahu Alaihi Wasallam said, "Fasting is a shield (or a screen or a shelter). So, the person observing fasting should avoid sexual relation with his wife and should not behave foolishly and impudently, and if somebody fights with him or abuses him, he should tell him twice, 'I am fasting." The Prophet added, "By Him in Whose Hands my soul is, the smell coming out from the mouth of a fasting person is better in the sight of Allah than the smell of musk. (Allah says about the fasting person), 'He has left his food, drink and desires for My sake. The fast is for Me. So I will reward (the fasting person) for it and the reward of good deeds is multiplied ten times."
Sahih Bukhari, Book 31, No. 118

✦ Narrated Abu Huraira Radi Allahu Anhu : The Prophet Sallallahu alaihi wasallam said, "Whoever does not give up forged speech and evil actions, Allah is not in need of his leaving his food and drink (i.e. Allah will not accept his fasting.)"
Sahih Bukhari, Book 31, Number 127

حضرت ابو سعید خدری رضی اللہ تعالیٰ عنہ سے روایت ہے: میں نے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کو یہ فر ما تے ہو ئے سنا: جس نے اللہ کی راہ میں ایک دن کا روزہ رکھا اللہ تعا لیٰ اس کے چہرے کو ( جہنم کی ) آگ سے ستر سال کی مسافت تک دور کر دیتا ہے۔

صحیح مسلم جلد ۳ ۲۷۱۳

رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا روزہ دوزخ سے بچنے کے لیے ایک ڈھال ہے اس لیے ( روزہ دار ) نہ فحش باتیں کرے اور نہ جہالت کی باتیں اور اگر کوئی شخص اس سے لڑے یا اسے گالی دے تو اس کا جواب صرف یہ ہونا چاہئے کہ میں روزہ دار ہوں، ( یہ الفاظ ) دو مرتبہ ( کہہ دے ) اس ذات کی قسم! جس کے ہاتھ میں میری جان ہے روزہ دار کے منہ کی بو اللہ کے نزدیک کستوری کی خوشبو سے بھی زیادہ پسندیدہ اور پاکیزہ ہے، ( اللہ تعالیٰ فرماتا ہے ) بندہ اپنا کھانا پینا اور اپنی شہوت میرے لیے چھوڑ دیتا ہے، روزہ میرے لیے ہے اور میں ہی اس کا بدلہ دوں گا اور ( دوسری ) نیکیوں کا ثواب بھی اصل نیکی کے دس گنا ہوتا ہے۔


رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا، اگر کوئی شخص جھوٹ بولنا اور دغا بازی کرنا ( روزے رکھ کر بھی ) نہ چھوڑے تو اللہ تعالیٰ کو اس کی کوئی ضرورت نہیں کہ وہ اپنا کھانا پینا چھوڑ دے۔

Sunday, 21 May 2017

SURA E IKHLAS IN HINDI TEXT- ENGLISH ARABIC




Surah al ikhlas 

Bismillaahir Rahmaanir Raheem
  1. Qul huwal laahu ahad
  2. Allah hus-samad
  3. Lam yalid wa lam yoolad
  4. Wa lam yakul-lahu kufuwan ahad

Surah Ikhlas 

Surat Ikhlas is in the 30th Parah of the Holy Quran. This is the Surah which is recited by the Muslims in each prayer. There are lots of benefits, rewards, and blessings of reciting Surah al Ikhlas. This Surah was revealed in Mecca. The Muslims memorizes this Surah first when they start memorizing different Surah of the Holy Quran.
1. Recitation of Surah al-ikhlas is equivalent to a third of the quran. In the hadith, abu hurairah (mabpwh) narrated that the prophet (pbuh) said: “gather around for i will recite to you a third of the quran.” then when people had gathered, the prophet (pbuh) came out and recited surat qul hu-wallaahu ‘ahad, and then went …back in. People then said to one another: “it must have been news from heaven which made him go back in.” the prophet (pbuh) then came out again and said: “i have told you that i will recite to you a third of the quran. Verily, it is equivalent to a third of the quran.” (surat al-ikhlas) in another hadith abi ad’dardaa (mabpwh) narrated that the prophet (pbuh) said: “would any of you be unable to read a third of the quran in one night?” the people replied: “how could a person read a third of the quran?” the prophet (pbuh) said: “surat qul hu-wallaahu ‘ahad is equivalent to a third of the quran.” in a hadith narrated by abi sa’eed al-khudri (mabpwh) a man once heard another man recitingsurat qul hu-wallaahu ‘ahad, repeating it again and again. In the morning, the man came to the prophet (pbuh) and mentioned that occurrence. The man had apparently not appreciated the importance of what he had heard, but the prophet (pbuh) turned to him and said: “by the one who possesses my soul! It is equivalent to a third of the quran.”
2. The increase of the recitation of surat al-ikhlas is a means of attaining the love of allah in a hadith narrated by aisha (mabpwh), the prophet (pbuh) once appointed a man in command of a brigade and this man was leading his men in prayer and he used to conclude his prayers by reading surat qul hu-wallaahu ‘ahad. Upon their return, they mentioned this fact to the prophet (pbuh). He (pbuh) in turn said: “ask him why he did that.” they asked the man, and he replied: “because it contains the attributes of the most compassionate and i love reading it.” the prophet (pbuh) then said: “inform him that allah loves him.”
3. Surat al-ikhlas is a means of entering paradise. In a hadith abu hurairah (mabpwh) said: “i arrived with the prophet (pbuh) and he heard a man reciting surat qul hu-wallaahu ‘ahad, and when he finished reading it, the prophet (pbuh) said: ‘inevitable!’ so i asked: ‘what is inevitable, o messenger of allah?’ he (pbuh) said: ‘paradise!’ i wanted to go and give the man the glad tidings, but i was afraid that i would miss lunch with the prophet (pbuh), and when i returned later, the man had gone.” in another hadith, narrated by anas (mabpwh), a man came to the prophet (pbuh) and said: “i love surat qul hu-wallaahu ‘ahad.” the prophet (pbuh) said: “your love of it has granted you paradise.” in another hadith, the prophet (pbuh) said: “whoever goes to bed at to sleep and lies on his right side and he recites surat qul hu-wallaahu ‘ahad 100 times, on the day of judgement the lord, praise be to him, will say to him: ‘o my servant! Enter paradise on your right.'”
4. Whoever recites this surah ten times, allah will build for him a dwelling in paradise. In a hadith narrated by mu’ad ibn anas (mabpwh), the prophet (pbuh) said: “whoever reads surat qul hu-wallaahu ‘ahad ten times, allah will build for him a house in paradise.” omar (mabpwh) then said: “then we will increase our recitation of it.” the prophet (pbuh) said: “allah is more kind and more generous.”
5. Surat al-ikhlas is a means of forgiveness of sins. In a hadith narrated by anas (mabpwh), the prophet (pbuh) said: “whoever reads surat qul hu-wallaahu ‘ahad every day two hundred times, allah will grant him one thousand five hundred rewards and will erase from him the sins of fifty years, unless he has debts.”
6. Surat al-ikhlas is a means of eradicating poverty. It was narrated in the hadith that the prophet (pbuh) said: “whoever reads surat qul hu-wallaahu ‘ahad when he enters his house, poverty will be eradicated from the family of that household and neighbours.” in another hadith, the prophet (pbuh) said: “whoever forgets to mention the name of allah when he starts his meal, then he should read suratqul hu-wallaahu ‘ahad after he finishes his meal.”
7. The constant recitation of surat al-ikhlas increases the presence of the angels at the time of death. In a hadith narrated by abu ummamah (mabpwh), the angel gibrael came to the prophet (pbuh) whilst in tabuk and said: “o mohamed! Go and attend the funeral of mu-a’weyah al-muzani (mabpwh).” the prophet (pbuh) went and the angel gibrael came down amongst 70,000 angels. Then the angel gibrael stretched his right wing over the mountains and they lowered themselves in humbleness, and he stretched his left wing over the earth and it lowered itself in humbleness to the point where he could see mecca and medina. Then the prophet (pbuh), gibrael and the angels offered prayer on that companion and when the prophet (pbuh) finished the prayer, he said: ‘o gibrael! How did mu-a’weyah reach this status?’ and angel gibrael replied: ‘by reading surat qul hu-wallaahu ‘ahad whilst sitting, walking and riding.'”
8. There are many benefits in reading surat al-ikhlas ten times at the end of every compulsory prayer in the hadith, the prophet (pbuh) said: “whoever accomplishes three things with a sound iman will enter paradise from any of its gates, and will be married to the pure wives of his choice. He who forgives a murderer of kin; he who settles debts on another person secretly; and he who recites ten times after every compulsory prayer surat qul hu-wallaahu ‘ahad.” abu bakr (mabpwh) said: “or even doing any of these, o messenger of allah?” the prophet (pbuh) then said: “or one of them.”
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9. Whoever reads surat al-ikhlas one hundred thousand times, allah will set him free it was narrated by anas (mabpwh) that the prophet (pbuh) said: “whoever reads surat qul hu-wallaahu ‘ahad one hundred thousand times would have bought himself from allah, and a caller from allah will announce in heaven and on earth: ‘verily, so-and-so has been set free by allah, so whoever owes him anything, let him claim it from allah.'”
10. When a person recites this Surah 100 times, all his past sins for the past 25years are forgiven (except killing an innocent person or unsurping the property of people).
11. Whoever recites this Surah 1000 times, will not die unless he sees his place in Jannah.
12. The Holy prophet (S.A.W) once advised a poor person to always say ‘Salaam’ when entering his house even if there was nobody there and then recite Surah At Tawheed, after a little while the man became abundantly wealthy.
13. It is Makruh to recite this Surah in one breath.This Surah has numerous benefits and is a cure of many ailments. It should be recited when travelling of facing a tyrant ruler.
14. Whoever recites this Surah 100 times before going to sleep Allah would forgive his sins comited in forty years.
15. If this Surah is recited for a dead person the reward is like of reciting the whole Quran.
16. If this Surah is recited over the eyes of a man suffering eye sore he would be cured.
17. It is a fortess of protection against every kind of affliction and calamity.
18. Allah likes very much those who recite this Surah regularly.
19. Whoever recites this Surah over the grave of believing men and women earns great rewards.
20.Whoever recites this Surah before dawn all that frightens him would disappear.
21. Who recites Surah Al Fatihah once and this Surah 30 times in each of the first two rakkat of tahajjud, all the sins he might have commited would inshallah be forgiven.
22. Recitation of this Surah 10 times at the time of going out of the house, the house remains in the protection of Allah till he comes back.
23. When a person goes to see a unjust man in authority, he should recite this Surah 3 times and close the fist and opne the fist when the interview is finished.
24. Whoever recites this Surah in his obligatory prayers Allah grants him good in this world as well as in the next life and forgives him, his parents and children.

Saturday, 20 May 2017

SURA AL FATEHA IN HINDI TEXT - VERTUES OF AL HAMDO SHAREEF




SURA E AL FATEHA IN HINDI ENGLISH GUJARATI




बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम
सूरतुल फ़ातिहा
मक्का में उतरी : आयतें सात, रुकु एक, अल्लाह के नाम से शुरु जो बहुत मेहरबान रहमत वाला
1. सब खू़बियाँ अल्लाह को जो मालिक सारे जहान वालों का
2. बहुत मेहरबान रहमतवाला
3. रोज़े जज़ा (इन्साफ के दिन) का मालिक
4. हम तुझी को पूजें और तुझी से मदद चाहें
5. हम को सीधा रास्ता चला
6. रास्ता उनका जिन पर तूने एहसान किया
7. न उनका जिनपर ग़ज़ब (प्रकोप) हुआ और न बहके हुओं का

तफसीर - सुरतुल फातिहा
अल्लाह के नाम से शुरु जो बहुत मेहरबान रहमत वाला, अल्लाह की तअरीफ़ और उसके हबीब पर दरुद.

सूरए फातिहा के नाम :
इस सूरत के कई नाम हैं - फा़तिहा, फा़तिहतुल किताब, उम्मुल कु़रआन, सूरतुल कन्ज़, काफि़या, वाफ़िया, शाफ़िया, शिफ़ा, सबए मसानी, नूर, रुकै़या, सूरतुल हम्द, सूरतुल दुआ़ तअलीमुल मसअला, सूरतुल मनाजात सूरतुल तफ़वीद, सूरतुल सवाल, उम्मुल किताब, फा़तिहतुल क़ुरआन, सूरतुस सलात.
इस सूरत में सात आयतें, सत्ताईस कलिमें, एक सौ चालीस अक्षर हैं. कोई आयत नासिख़ या मन्सूख़ नहीं.


सूरतुल फ़ातिहा की खूबियाँ:
हदीस की किताबों में इस सूरत की बहुत सी ख़ूबियाँ बयान की गई है.
हुजू़र सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फरमाया तौरात व इंजील व जु़बूर में इस जैसी सूरत नहीं उतरी.(तिरमिज़ी).
एक फ़रिश्ते ने आसमान से उतरकर हुजू़र सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर सलाम अर्ज़ किया और दो ऐसे नूरों की ख़ूशख़बरी सुनाई जो हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से पहले किसी नबी को नहीं दिये गए.
एक सूरए फ़ातिहा दूसरे सुरए बक्र की आख़िरी आयतें.(मुस्लिम शरीफ़)
सूरए फा़तिहा हर बीमारी के लिए दवा है. (दारमी).
सूरए फ़ातिहा सौ बार पढ़ने के बाद जो दुआ मांगी जाए, अल्लाह तआला उसे क़ुबूल फ़रमाता है. (दारमी)
इस्तिआजा: क़ुरआन शरीफ़ पढ़ने से पहले "अऊज़ो बिल्लाहे मिनश शैतानिर रजीम" (अल्लाह की पनाह मांगता हूँ भगाए हुए शैतान से) पढ़ना प्यारे नबी का तरीक़ा यानी सुन्नत है. (ख़ाज़िन) लेकिन शागिर्द अगर उस्ताद से पढ़ता हो तो उसके लिए सुन्नत नहीं है. (शामी) नमाज़ में इमाम और अकेले नमाज़ी के लिये सना यानी सुब्हानकल्लाहुम्मा पढ़ने के बाद आहिस्ता से "अऊज़ो बिल्लाहे मिनश शैतानिर रजीम" पढ़ना सुन्नत हैं.
तस्मियह: बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम क़ुरआने पाक की आयत है मगर सूरए फ़ातिहा या किसी और सूरत का हिस्सा नहीं है, इसीलिये नमाज़ में ज़ोर के साथ् न पढ़ी जाए. बुखारी और मुस्लिम शरीफ़ में लिखा है कि प्यारे नबी हुजू़र सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और हज़रत सिद्दीक़ और फ़ारूक़ (अल्लाह उनसे राज़ी) अपनी नमाज़ "अलहम्दो लिल्लाहे रब्बिल आलमीन "यानी सूरए फ़ातिहा की पहली आयत से शुरू करते थे. तरावीह (रमज़ान में रात की ख़ास नमाज़) में जो ख़त्म किया जाता है उसमें कहीं एक बार पूरी बिस्मिल्लाह ज़ोर से ज़रूर पढ़ी जाए ताकि एक आयत बाक़ी न रह जाए.
क़ुरआन शरीफ़ की हर सूरत बिस्मिल्लाह से शुरू की जाए, सिवाय सूरए बराअत या सूरए तौबह के. सूरए नम्ल में सज्दे की आयत के बाद जो बिस्मिल्लाह आई है वह मुस्तक़िल आयत नहीं है बल्कि आयत का टुकड़ा है. इस आयत के साथ ज़रूर पढ़ी जाएगी, आवाज़ से पढ़ी जाने वाली नमाज़ों में आवाज़ के साथ और खा़मोशी से पढ़ी जाने वाली नमाज़ों में ख़ामोशी से. हर अच्छे काम की शुरूआत बिस्मिल्लाह पढ़कर करना अच्छी बात है. बुरे काम पर बिस्मिल्लाह पढ़ना मना है.
सूरए फ़ातिहा में क्या क्या है?
इस सूरत में अल्लाह तआला की तारीफ़, उसकी बड़ाई, उसकी रहमत, उसका मालिक होना, उससे इबादत, अच्छाई, हिदायत, हर तरह की मदद तलब करना, दुआ मांगने का तरीक़ा, अच्छे लोगों की तरह रहने और बुरे लोगों से दूर रहने, दुनिया की ज़िन्दगी का ख़ातिमा, अच्छाई और बुराई के हिसाब के दिन का साफ़ साफ़ बयान है.
हम्द यानि अल्लाह की बड़ाई बयान करना....
हर काम की शुरूआत में बिस्मिल्लाह की तरह अल्लाह की बड़ाई का बयान भी ज़रूरी है. कभी अल्लाह की तारीफ़ और उसकी बड़ाई का बयान अनिवार्य या वाजिब होता है जैसे जुमुए के ख़त्बे में, कभी मुस्तहब यानी अच्छा होता है जैसे निकाह के ख़ुत्बे में या दुआ में या किसी अहम काम में और हर खाने पीने के बाद. कभी सुन्नते मुअक्कदा (यानि नबी का वह तरीक़ा जिसे अपनाने की ताकीद आई हो)जैसे छींक आने के बाद. (तहतावी)
"रब्बिल आलमीन" (यानि मालकि सारे जहां वालों का)में इस बात की तरफ इशारा है कि सारी कायनात या समस्त सृष्टि अल्लाह की बनाई हुई है और इसमें जो कुछ है वह सब अल्लाह ही की मोहताज है. और अल्लाह तआला हमेशा से है और हमेशा के लिये है, ज़िन्दगी और मौत के जो पैमाने हमने बना रखे हैं, अल्लाह उन सबसे पाक है, वह क़ुदरत वाला है."रब्बिल आलमीन" के दो शब्दों में अल्लाह से तअल्लुक़ रखने वाली हमारी जानकारी की सारी मन्ज़िलें तय हो गई.
"मालिके यौमिद्दीन" (यानि इन्साफ वाले दिन का मालिक) में यह बता दिया गया कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं है क्योंकि सब उसकी मिल्क में है और जो ममलूक यानी मिल्क में होता है उसे पूजा नहीं जा सकता. इसी से मालूम हुआ कि दुनिया कर्म की धरती है और इसके लिये एक आख़िर यानी अन्त है. दुनिया के खत्म होने के बाद एक दिन जज़ा यानी बदले या हिसाब का है. इससे पुनर्जन्म का सिद्धान्त या नज़रिया ग़लत साबित हो गया.
"इय्याका नअबुदु" (यानि हम तुझी को पूजें) अल्लाह की ज़ात और उसकी खूबियों के बयान के बाद यह फ़रमाना इशारा करता है कि आदमी का अक़ीदा उसके कर्म से उपर है और इबादत या पूजा पाठ का क़ुबूल किया जाना अक़ीदे की अच्छाई पर है. इस आयत में मूर्ति पूजा यानि शिर्क का भी रद है कि अल्लाह तआला के सिवा इबादत किसी के लिये नहीं हो सकती.
"वइय्याका नस्तईन" (यानि और तुझी से मदद चाहें)में यह सिखाया गया कि मदद चाहना, चाहे किसी माध्यम या वास्ते से हो, या फिर सीधे सीधे या डायरैक्ट, हर तरह अल्लाह तआला के साथ ख़ास है. सच्चा मदद करने वाला वही है. बाक़ि मदद के जो ज़रिये या माध्यम है वा सब अल्लाह ही की मदद के प्रतीक या निशान है. बन्दे को चाहिये कि अपने पैदा करने वाले पर नज़र रखे और हर चीज़ में उसी के दस्ते क़ुदरत को काम करता हुआ माने. 

"इहदिनस सिरातल मुस्तक़ीम"(यानी हमको सीधा रास्ता चला) इसमें अल्लाह की ज़ात और उसकी ख़ूबियों की पहचान के बाद उसकी इबादत, उसके बाद दुआ की तालीम दी गई है. इससे यह मालूम हुआ कि बन्दे को इबादत के बाद दुआ में लगा रहना चाहिये. हदीस शरीफ़ में भी नमाज़ के बाद दुआ की तालीम दी गई है. (तिबरानी और बेहिक़ी) सिराते मुस्तक़ीम का मतलब इस्लाम या क़ुरआन नबीये करीम (अल्लाह के दुरूद और सलाम उनपर) का रहन सहन या हुज़ूर या हुज़ूर के घर वाले और साथी हैं. इससे साबित होता है कि सिराते मुस्तक़ीम यानी सीधा रास्ता एहले सुन्नत का तरीक़ा है जो नबीये करीम सल्लाहो अलैहे वसल्लम के घराने वालों, उनके साथी और सुन्नत व क़ुरआन और मुस्लिम जगत सबको मानते हैं.

"सिरातल लज़ीना अनअम्ता अलैहिम"(यानी रास्ता उनका जिनपर तुने एहसान किया) यह पहले वाले वाक्य या जुमले की तफ़सील यानी विवरण है कि सिराते मुस्तक़ीम से मुसलमानों का तरीक़ा मुराद है. इससे बहुत सी बातों का हल निकलता है कि जिन बातों पर बुज़ुर्गों ने अमल किया वही सीधा रास्ता की तारीफ़ में आता है.
"गै़रिल मग़दूबे अलैहिम वलद दॉल्लीन "(यानी न उनका जिनपर ग़ज़ब हुआ और न बहके हुओ का) इसमें हिदायत दी गई है कि सच्चाई की तलाश करने वालों को अल्लाह के दुश्मनों से दूर रहना चाहिये और उनके रास्ते, रश्मों और रहन सहन के तरीक़े से परहेज़ रखना ज़रूरी है. हदीस की किताब तिरमिजी़ में आया है कि "मग़दूबे अलैहिम" यहूदियों और "दॉल्लीन" इसाईयों के लिये आया है.

सूरए फ़ातिहा के ख़त्म पर "आमीन" कहना सुन्नत यानी नबी का तरीक़ा है, "आमीन" के मानी है "ऐसा ही कर" या "कु़बूल फ़रमा". ये क़ुरआन का शब्द नहीं है. सूरए फ़ातिहा नमाज़ में पढ़ी जाने या नमाज़ के अलावा, इसके आख़िर में आमीन कहना सुन्नत है.
हज़रत इमामे अअज़म का मज़हब यह है कि नमाज़ में आमीन आहिस्ता या धीमी आवाज़ में कही जाए.

ख्वाजा गरीब नवाज- मोईनुद्दीन चिश्ती अजमेर

Urdu Shayri by Sahib Ahmedabadi

Sahib Ahmedabadi