Wednesday, 31 May 2017

TARAWEEH PRAYER- DUA AND HISTORY OF TARAWEEH PRAYER

               بسم الله الرحمان ال رحیم


तरावीह मर्द व औरत सब के लिए सुन्नत-ए-मौअक्कदा है इसका छोड़ना जाइज़ नहीं। ख़ुद हुज़ूर ने भी तरावीह पढ़ी और उसे बहुत पसंद फ़रमाया। सही मुस्लिम में अबू हुरैरा से मरवी इरशाद फ़रमाते हैं जो रमज़ान में क़ियाम करे ईमान की वजह से और सवाब तलब करने के लिए उसके अगले गुनाह बख़्श दिये जायेंगे यानि सग़ीरा (छोटे-छोटे गुनाह) ।

फिर हुज़ूर(स.अ.व) ने इस अन्देशे से कि उम्मत पर फ़र्ज़ न हो जाये तर्क फ़रमाई ।  फिर फ़ारूक़े आज़म(रदी) रमज़ान में एक रात मस्जिद में तशरीफ़ ले गये और लोगों को अलग-अलग नमाज़ पढ़ते पाया। फ़रमाया मैं मुनासिब जानता हूँ कि इन सबको एक इमाम के साथ जमा कर दूँ तो बेहतर हो। सब को एक इमाम उबई इब्ने कअब(रदी)के साथ इकट्ठा कर दिया फिर दूसरे दिन तशरीफ़ ले गये तो देखा कि लोग अपने इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ते हैं तो फ़रमाया यह अच्छी बिदअत है।

उरवा बिन जुबैर रदी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है की आयशा रदी अल्लाहु अन्हा ने फ़रमाया एक बार (रमज़ान की ) आधी रात में रसूल-अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिद में तशरीफ़ ले गए और वहां तरावीह की नमाज़ पढ़ी सहाबा रदी अल्लाहु अन्हुमा भी आपके साथ नमाज़ में शामिल हो गए सुबह हुयी तो उन्होंने उसका चर्चा किया
फिर दूसरी रात में लोग पहले से भी ज़्यादा शामिल हो गए और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ नमाज़ पढ़ी दूसरी सुबह को और ज़्यादा चर्चा हुआ
तो तीसरी रात उस से भी ज़्यादा लोग जमा हो गए आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने (उस रात भी ) नमाज़ पढ़ी और लोगों ने आपकी पैरवी की.
चौथी रात को ये आलम था की मस्जिद में नमाज़ पढने आने वालों के लिए जगह भी बाकी नहीं रही ( मगर उस रात आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नमाज़ के लिए बहार नहीं आये )
बल्कि सुबह (फजर की) नमाज़ के लिए तशरीफ़ लाए और जब नमाज़ पढ़ इ तो लोगों की तरफ मुतवज्जा होकर शहादत के बाद फ़रमाया अम्मा बाद तुम्हारे यहाँ जमा होने का मुझे इल्म था लेकिन मुझे इसका खौफ हुआ की ये नमाज़ तुम पर फ़र्ज़ न हो जाए और फिर तुम उसे अदा न कर सको और जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफ़ात हुयी  तो उसके बाद भी यही केफियत रही ( लोग अलग अलग तरावीह पढ़ते रहे )
सही बुखारी जिल्द 3,  हदीस : 2012
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English Translation:
Narrated Urwa Radi Allahu Anhu That he was informed by Aisha Radi Allahu Anha, Prophet Sallallahu Alaihi Wasallam went out in the middle of the night and prayed in the mosque and some men prayed behind him. In the morning, the people spoke about it and then a large number of them gathered and prayed behind him (on the second night). In the next morning the people again talked about it and on the third night the mosque was full with a large number of people. Allah's Messenger () came out and the people prayed behind him. On the fourth night the Mosque was overwhelmed with people and could not accommodate them, but the Prophet () came out (only) for the morning prayer. When the morning prayer was finished he recited Tashah-hud and (addressing the people) said, "Amma ba'du, your presence was not hidden from me but I was afraid lest the night prayer (Qiyam) should be enjoined on you and you might not be able to carry it on." So, Allah's Apostle passed away and the situation remained like that (i.e. people prayed individually). "


Sahih Bukhari, Vol. 3, Book 32, Hadith 229

Urwa bin Zubair Radi Allahu Anhu se rivayat hai ki Ayesha radi allahu Anha ne farmaya ek baar (Ramadan ki ) aadhi raat mein Rasool-Allah Sallallahu Alaihi Wasallam masjid mein tashreef le gaye aur wahan taraweeh ki namaz padhi, Sahaba Radi Allahu Anhuma bhi aapke saath namaz mein shamil ho gaye, subah huyee to unhone uska charcha kiya phir dusri raat mein log pahley se bhi zyada shamil ho gaye, aur Aap Sallallahu Alaihi Wasallam ke saath namaz padhi.
Dusri subah ko aur zyada charcha hua to teesri raat us se bhi zyada log jama ho gaye ,
Aap Sallallahu Alaihi Wasallam ne (us raat bh) namaz padhi aur logo ne aapki pairwi ki,
Chothi raat ko ye aalam tha ki masjid mein namaz padhney aaney walo ke liye jagah bhi baqi nahi rahi
( magar us raat Aap Sallallahu Alaihi Wasallam Namaz ke liye bahar hi nahi aaye)
bulki subah namaz ke liye tashreef laye aur jab namz padh li to logo ki taraf mutwajja hojar shahadat ke baad farmaya Amma baad tumhare yahan jama hone ka mujhe ilm tha lekin mujhe iska khauf hua ki ye namaz tum par farz na ho jaye aur phir tum usey ada na kar sako Aur jab Aap Sallallahu Alaihi Wasallam ki wafat huyee uske baad bhi yahi kaifiyat rahi ( log alag alag taraweeh padhte rahe )
Sahih Bukhari, Vol 3, 2012

तरावीह के ज़रूरी मसाइल
  • ज़्यादातर उलमा-ए-किराम के नज़दीक तरावीह की बीस रकअतें हैं और यही अहादीस से साबित है।
  • इसका वक़्त इशा के फ़र्ज़ों के बाद से तुलू-ए-फ़ज्र तक है।
  • तरावीह वित्र से पहले भी हो सकती है और बाद में भी।
  • अगर किसी शख़्स की तरावीह की कुछ रकअतें बाक़ी रह गईं और इमाम ने वित्र पढ़ना शुरू कर दिया तो इमाम के साथ वित्र पढ़ लें फिर बाक़ी अदा कर लें जबकि फ़र्ज़ जमाअत से पढ़े हों यह अफ़ज़ल है,अगर तरावीह पूरी करके वित्र तन्हा पढ़े तो भी जाइज़ है।
  • तरावीह के लिये पहले इशा की नमाज़ पढ़ना ज़रूरी हैं|
  • अगर भूल से इशा की नमाज़ बिना तहारत पढ़ ली और तरावीह व वित्र तहारत के साथ तो इशा व तरावीह फिर पढ़ें वित्र हो गये।
  • मुस्तहब यह है कि तिहाई रात तक देर करें, आधी रात के बाद पढ़ें तब भी कराहत नहीं।
  • तरावीह की क़ज़ा नहीं यानि अगर छूट गईं और वक़्त ख़त्म हो गया तो नहीं पढ़ सकते।
  • तरावीह की बीस रकअतें दस सलाम से पढ़ें यानि हर दो रकअत पर सलाम फेरें और अगर किसी ने बीसों रकअतें पढ़कर आख़िर में सलाम फेरा तो अगर हर दो रकअत पर क़ादा करता रहा (यानि तशह्हुद पढ़ता रहा) तो हो जायेगी मगर कराहत के साथ और अगर क़ादा न किया था तो सिर्फ़ दो रकअत तरावीह हुईं ।
  • एहतियात यह है कि जब दो रकअत पर सलाम फेरें तो हर दो रकअत पर अलग-अलग नीयत करें और अगर एक साथ बीसों रकआत की नीयत कर ली तो भी जाइज़ है।
  • तरावीह में एक बार क़ुरआन पाक ख़त्म करना सुन्नत-ए-मौअक्कदा है।
  • अगर क़ुरआन पाक पहले ख़त्म हो गया तो तरावीह आख़िर रमज़ान तक बराबर पढ़ते रहें क्योंकि यह सुन्नत-ए-मौअक्कदा है।
  • क़िरात और अरकान की अदायगी में जल्दी करना मकरूह है, तरतील ( यानि ठहर-ठहर कर) बेहतर है। इसी तरह अऊ़ज़ुबिल्लाहि व बिस्मिल्लाह को भी इत्मिनान से पढ़ें और तस्बीह वग़ैरा का छोड़ देना भी मकरूह है।
  • हर चार रकआत पर इतनी देर तक बैठना मुस्तहब है जितनी देर में चार रकअतें पढ़ें। बीसों रकअतें पढ़ने के बाद अगर भारी हो तो न बैठें।
  • तरावीह में हर चार रकआत एक “तरवीहा” है। इस तरह बीस रकआत में पाँच तरवीहा हुईं ।
  • हर चार रकअत के दरमियान जब बैठें चाहे ख़ामोश रहें या कलिमा, दुरूद शरीफ़ पढ़ते रहें, तिलावत करें या चार रकअतें तन्हा नफ़्ल पढ़ें जमाअत से मकरूह है।
  • हर चार रकअत तरावीह के बाद बैठ कर नीचे दी हुई तस्बीह पढ़ें।

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ख्वाजा गरीब नवाज- मोईनुद्दीन चिश्ती अजमेर

Urdu Shayri by Sahib Ahmedabadi

Sahib Ahmedabadi