Monday, 19 June 2017

ख्वाजा गरीब नवाज- मोईनुद्दीन चिश्ती अजमेर-ALL ABOUT KHWAJA E AJMER MOINUDDIN CHISHTI R.A- PART-1


                                           بسم الله الرحمان الرحیم 

हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन हसन अली अजमेरी रहमतुल्लाह अलैहि 537 हिजरी में खुरासान के सन्जर नामक गांव में पैदा हुए. ख्वाजा बुजुर्ग के वालिद माजिद का नाम सैयद गियासुद्दीन हसन है, वह आठवीं पुश्त में हजरत मूसा काजिम के पाते होते है। वालिदा माजिदा का नाम बीबी उम्मुलवरा उर्फ बीबी माहे नूर है जो चन्द वास्तों से हजरत इमाम हसन की पोती होती है। इसलिए आप बाप की तरफ से हुसैनी और माँ की तरफ से हसनी सैयद है।

ख्वाजा साहब शुरू से ही दुरवेशों, सूफियों और फकीरों की संगत में बैठते, उनका अदब करते और उनसे मुहब्बत रखते थे। एक रोज आप अपने बाग में पौधों को पानी दे रहे थे कि एक बुजुर्ग शेख इब्राहीम कन्दोजी र.अ.थे। ख्वाजा साहब की नजर जब उन पर पड़ी तो सब काम छोड़कर आपके पास आ गये और आपके हाथ को चूमा और बहुत अदब से एक सायादार पेड़ की छांव में लाकर बिठाया। और तो कोई सामान था नही मगर इन दिनो अंगूर का मौसम था और अंगूर के खुशनूमा गुच्छे लटक रहे थे। ख्वाजा साहब ने अंगूरो का एक पका हुआ गुच्छा तोड़कर उनको पेश किया और उनके सामने अदब से बैठ गये । अल्लाह वाले बुजुर्ग को आपकी यह अदा बहुत पसन्द आई और उन्होने खुशी से नोश फरमाये। बुजुर्ग की खुदा शनास नजरों से फौरन ताड़ लिया कि यह होनहार बच्चा राहे हक का तालिब है। उन्होने अपनी जेब से खली का एक टुकडा निकाला और उसको अपने दांतो से चबाकर ख्वाजा साहब के दहने मुबारक (मुख) में डाल दिया। हमारे ख्वाजा क्योंकि शुरू से ही दुरवेशों का अदब करते और फकीरों से मुहब्बत रखते थे, इसलिए इब्राहीम कन्दोजी र.अ. के दिये हुए खली के टुकडे को खा गये। फिर क्या था, आपका दिल दुनिया से उचट गया और वहम के सभी परदे हट गये। खली का वह टुकड़ा हलक से उतरना था कि आप रूहानियत की दुनिया में पहुच गये, दिल में एक जोशे हैरत पैदा हो गया, आंख खुली रह गई। जब आप उस हालत से बाहर आये तो अपने को तन्हा पाया। शेख इब्राहीम कन्दोजी र.. जैसे आये थे वैसे ही चल दिये।
शेख इब्राहीम कन्दोजी र.. तो चल दिये लेकिन हमारे ख्वाजा ने जो जलवा देखा था वह आपकी नजरों के सामने फिर रहा था और ऐसा नही था जिसको फरामोश किया जा सकता। वर बार-बार इसको देखने की ख्वाहिश करते। आपने हर मुमहनि सब्र और तहम्मुल से काम लिया मगर फिर भी दिल काबू में न रहा। इश्क की आग भड़क उठी और जब दीवानगी हद से बढ़ने लगी तो आपकी नजरों में दुनिया और इसकी दौक्लत हकीर नजर आने लगी। चुनाचे बाग और पवन चक्की को बेचकर, और जो कुछ नगद व सामान पास मौजूद था, राहे खुदा में फकीरों और बेसहारों में बांट दिया और थोड़ा सा जरूरी सामान साथ लेकर तलाशे हक में निकल पड़े।
शेख इब्राहीम कन्दोजी र.. ने जब से हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती र.. को इश्के इलाही की झलक दिखाई थी उसी वक्त से आपका दिन बेकरार था। और जब तालीम की हवा ने इश्क की आग का भझ़का दिया। इस तरह आपने एक दिन समरकन्द को भी छोड़ा और अल्लाह का नाम लेकर मगरीब (पश्चिम) की जानिब रवाना हो गये। मगरीब की सरजमीन बड़े-बड़े आरिफाने हक के मजारों से भरी पड़ी थी। और बड़े-बड़े खुदा रसीदा बुजुर्ग उस सरजमीन पर मौजूद थे, जहां कदम-कदम पर फैज के दरिया जारी थे। समरकन्द से एक रास्तर दक्षिण की तरफ बल्ख को जाता है। आप इसी रास्ते पर कामिल पीर की तलाश में चल पड़े मगर इस तमाम सफर में कोई पीरे कामिल न मिला और आप बराबर चलते रहे जैसे कोई गैबी कशिश आपको खींचते लिए जा रही हो। नेशापुर से कुच्छ  ही दूर चले थे कि कसबा हरवन में पहोंच गये।
कस्वा हारून एक छोटा-सा कस्बा था और इन दिनो वहां हजरत ख्वाजा शेख उस्मान तशरीफ़ फर्मा थे.
हजरत शेख उस्मान हारूनी र. महान औलियाओं में से थे और आपको फैज व बरकत की चर्चा दूर-दूर तक फैली हुई थी, हाजतमन्द और अल्लाह के चाहने वाले अपनी मुरादों की झोलियां भर-भर कर ले जाते थे।
हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज र.. के इश्क का जज्बा आखिकार आपको मंजिल पर ले आया, यानी आप कस्वा-ए-हारून में दाखिल हो गये। उस वक्त आपकी खुशी की इन्तिहा न रही क्योकि आपने अब चश्मा-ए-आबे बका को पा लिया था यानी पीरे कामिल को पा लिया था।
हमारे ख्वाजा र.. दूर से सफर करते हुए हारून पहुंचे थे इसलिए आपका जिस्म मुबारक गर्द आलूद (धूल युक्त) हो गया था और लिबास गुबार में अटा हुआ थो। आप बेकरा जरूर थे मगर चेहरे पर ताजगी और संजीदगी (गंभीरता) दिखाई देती थी। हजरत गरीब नवाज र.. ने हजरत ख्वाजा शेख उस्मान हारूनी र.. के दस्ते हम परस्त पर बैअत की और ख्वाजा उस्मान हारूनी र.. ने आपको अपने शागिर्दो में शामिल कर लिया

हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती एक मुद्दत से ही हजरत ख्वाजा उस्मान हारूनी र.अ. से अकीदत रखते थें अब इस कदर शेदाई हो गये कि हर वक्त सफर हो या कियाम  हो अपने गुरू की खिदमत में हाजिर रहते। उनका बिसतर, तकिया, पानी का मशकीजा अज्ञैर दूसरा जरूरी सामान अपने सर और कन्धों पर रखकर हमसफर (साथ-साथ) होते थे। हजरत ख्वाजा गरीब नवाज र.. बीस साल तक अपने पीर की खिदमत में रहकर अल्लाह तआला की इबादत करते रहे। और उसी अर्स में मारफत व हकीकत की सभी मंजिलें तय कर ली और फकीरी से अच्छी तरह वाकिफ हो गये


हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज र.. के इर्शादात अहले बसीरत के लिए बेश कीमत खजाना है। अल्लाह तआला हमें उनकों समझने और उन पर अमल करने की तौफीक अता फरमाये।
1. गुनाह करने से इतना नुक्सान नही होता जितना कि अपने किसी भाई को हकीर (तुच्छ) या जलील समझने से।
2.
फकीरी का मुस्ताहिक (लायक) वह शख्स होता है जो दुनिया-ए-फानी में अपने पास कुछ न रखे।
3.
बन्दे पर फकीर का शब्द उस वक्त लागू है कि जब आठ साल तक बायें हाथ का फरिश्ता जो बदी लिखने वाला है उसके आमालनामें में एक भी बदी न लिखे।
4.
खुदा की शनाख्त (पहचान) उस शख्स को होगी जो दुनिया वालों से अलग रहे और खुद को बड़ा न समझें।
5.
खामोश और गमगीन रहना आरिफों की एक अलामत (पहचान) है।
6.
पूरी दुनियां और कायनाते आलम को अपनी दो उंगलियों में देखना इरफान का एक दर्जा है।
7.
बुजुर्ग वह है जो अपना दिल दोनों जहान से उठा ले और हरदम आलमे गैब से लाखों तजल्लियां उस पर जाहिर हों और अल्लाह की राह में वह अल्लाह तआला के सिवा किसी से मदद न चाहे।
8.
नमाज मोमिनीन को अल्लाह तआला से मिलायेगी, इसकी हिफाजत पूरी तरह करनी चाहिए।
9.
हर रोज आसमान से दो फरिश्ते उतरते है। उनमें से एक पुकारता है कि जिससे फर्जे इलाही जान-बूझकर छूट गया वह अल्लाह तआला की जमानत से बाहर हो गया। फिर दूसरा कहता है कि जिसने रसूलुल्लाह स... की सुन्नत को छोड़ा वह कियामत के रोज शफाअत से महरूम रहेगा।
10.
जो शख्स पांचो वक्त पाबन्दी के साथ नमाज अदा करता है कियामत के दिन उसकी नमाज उसकी हिफाजत और निगहबानी करेगी।
11.
जो शख्स फज्र की नमाज पढ़ कर सूरज उगने तक उसी जगह बैठा रहे और नमाजे इशाराक पढ़ कर उठे तो हक तआला उसे मय सतर हजार आदमियों के जो उसके अह्रल (योग्य) हों बख्श देता है।
12.
पांच चीजो का देखना इबादत है, चाहे वे चीजे अलग्7अलग क्यों न देखी जायें-
(1)
मां-बाप का देखना
(2)
कुरआन मजीद का देखना
(3)
अल्लाह वालों को देखना
(4)
खाना-ए-काबा का देखना
(5)
अपने पीरे तरीकत का देखना
13.
बाज (कुछ) बुजुर्ग ने सुलूक के सौ दर्जे मुकर्रर किए है। उनमें सत्तर दर्जे तय करने के बाद कश्फ व करामात का रूतबा हासिल होता है। जो शख्स अपने आपको कश्फ व करामात के दर्जे में जाहिर नही करता वह बाकी तीस दर्जे भी तय कर जाता है। बस, बुजुर्गी के लिए जरूरी है क वह अपने आपको उस दर्जे में जाहिर न करें और पूरे सौ दर्जे तय कर लें।
14.
हमारे खानदाने सुलूक के पन्द्रह दर्जे है। पांचवां दर्जा कश्फ व करामात का है। हमारे बजुर्गो ने वसीयत की है कि पांचवें दर्जे पर ही न ठहरे बल्कि पूरे पन्द्रह दर्जे हासिल कर ले।
15.
मुहब्बत के चार दर्जे है-
(1)
हमेशा अललाह तआला का जिक्र करना।
(2)
जिक्र इलाही को खूब दिल लगाकर करना और उसके जिक्र में खुश रहना।
(3)
वह खूबी पैदा करना जो दुनियावी मुहब्बत से अलग हो।
(4)
हमेशा रोते रहना।
16.
जो शख्स ाहता है कियामत के सख्त (भयानक) अजाब से महफूज रहे तो उसके लिए लाजमी है कि वह मुसीबत में रहने वालों की फरियाद सुने, जरूरतमन्दों की जरूरत पूरी करें और भूखों को पेट भर कर खिलायें।
17.
चार काम नफ्स के लिए जीनत (शोभा) है-
(1)
भूखे को खाना खिलाना।
(2)
मुसीबत जदा की मदद करना।
(3)
जरूरतमन्दों की जरूरत पूरी करना।
(4)
दुश्मन से मेहरबानी और अच्छे सुलूक से पेश आना।
18.
जिस शख्स में तीन खासियतें हों खुदा उसको दोस्त रखता है-
(1)
दरिया जैसी सखावत
(2)
सूरज जैसी शफ्कत (भलाई)
(3)
जमीन जैसी तवाजों।
19.
नेक काम करने से बेहतर नेकों की सोहबत और बुरे काम करने से बदवर बुरों की सोहबत है।
20.
सोहबत का असर जरूर होता है। बुरी सोहबत से बुरा असर और नेक सोहबत से अच्छा असर होता है।
21.
हाजत रवाई के लिए सूरः फातिहा पढ़ना बेहद फायदेमन्द साबित हुआ है।
22.
नदी नाले औश्र दरिया के पानी में आवाज होती है लेकिन जब वह समुद्र से जाकर मिल जाते है तो कामिल सुकून हो जाता है, इसी मिसाल को सुलूक की मन्जिलें मान लेना चाहिए।
23.
हर दौरे में दुनिया के अन्दर खुदा के सैकड़ो ऐसे मक्बूल व प्यारे बन्दे होते हैं जिन्हें कोई नहीं जानता और वह गुमनामी के गोशे में इन्तिकाल (देहान्त) फरमा जाते है। अतः दुनिया को औलियाओं से खाली मत समझों।
24.
खुदा की पहचान उसे हागी जो लोगों से अलग-थलग रहे। दुनियादार बुजुर्ग होने का दावा न करें।
25.
बुजुर्गी की निशानी यह है कि खुदा के सिवा तमाम चीजों की मुहब्बत दिल से निकाल दें।
26.
सिर्फ दिल और जिस्म से काबे का तवाफ न करें क्योकि आरिफ (खुदा शनास) वह है जिसका दिल अर्श और हरमैन के चक्कर लगाता रहे।
27.
खामोश और गमगीन रहना बुजुर्गी की एक निशानी है।
28.
तमाम इबादतों से ज्यादा अफ्जल (उत्तम) लाचारों और मजलूमों की फरियाद को पहुचना है।
29.
आरिफ हर वक्त इष्क की आग में डूबा रहता है। अगर खड़ा है तो दोस्त ही के इश्क में खड़ा है, बैठा है तो उसी का जिक्र कर रहा है सोया है तो ख्याले दोस्त में बेखबर है और जागता है तो उसी के ख्याल में होता है।
30.
आरिफ पर एक हाल होता है, उस वक्त वह कदम उठाया करते है। एक कदम में हिजाबे अजमत से गुजर कर हिजाबे किब्रीयाई तक पहुंचते है और दूसरे कदम में वापस आ जाते है। यह बयान फरमाते हुए हजरत ख्वाजा गरीब नवाज र0 0 के आसू जारी हो गये।
31.
आरिफ वह है, तो कुछ चाहे सामने आ जाये और कुछ पूछे उसका जवाब मिले।
32.
बद बख्त वह है जो गुनाह करे और उम्मीद रखे कि मै मकबूल बन्दा हूं।
33.
सखावत करना नईम (नेमत वाने वाला ) होने की चाबी है।
34.
दुरवेश वह है जो हाजमन्दों को महरूम (निराश) वापस न करे।
35.
राहे मुहब्बत में जीत उसकी होती है जो दोनों जहान से बेताल्लुक हो जाये।
36.
तवक्कुल यह है कि लोगों के रंज व मुसीबत उठाए और किसी से शिकायत और इज्हार न करें।
37.
जितना ज्यादा अल्लाह में ध्यान होगा उतना ही ज्यादा हैरत बढे़गी।
38.
इल्म (ज्ञान) दरिया की धारा है और अल्लाह का ध्यान दरिया की एक लहर है, फिर खुदा कहां और बन्दा कहां। इल्म खुदा को है और इरफान (अल्लाह का ध्यान) बन्दे को है।
39.
अल्लाह में ध्यान रखने वाले सूरज की तरह रोशन रहते हैं और तमाम दुनिया को रोशन रखते है।
40.
आरिफ मौत को दोस्त, आराम को दुश्मन और अल्लाह के जिक्र को पयारा रखते है।
41.
जो शख्स वुजू करके सोता है उसकी रूह अर्श के नीचे सैर करती रहती है।
42.
आशिकों का दिल मुहब्बत की आग से जला हुआ होता है और जो कुछ उसके अन्दर आता है यह आग उसको भी जलाकर राख कर देती है।
43.
मुहब्बत में अदना  दर्जा यह है कि अल्लाह की सिफात  उसमें दिखाई दे और आला दर्जा यह है कि अगर उस पर कोंई दावा करे तो उसको उलटा मुजरिम बना दे।
44.
दुरवेशों के लिए सबसे बड़ी नेमत यह है कि दुरवेशों के पास बैठें और सबसे बड़ा नुक्सान यह है कि दुरवेशों से दूर रहे।
45.
कोई शख्स इबादत से अल्लाह का कुर्ब (निकटता) हासिल नही कर सकता जब तक नमाज न पढ़े क्योकिं नमाज ही बन्दे को अल्लाह से मिलाएगी ।
46.
चार खूबियां नफ्स की जौहर हैं-
(1)
गरीबी में अमीरी का इज्हार करना।
(2)
भूख के वक्त सेरी का इज्हार करना।
(3)
गम के वक्त खुश रहना।
(4)
दुश्मन के साथ दोस्ती करना।
47.
नमाज अल्लाह के कुर्ब का जीना (सीढ़ी) है।
48.
झूठी कमस खाने वाले के घर से बरकत जाती रहती है और वह बर्बाद हो जाता है।
49.
अलहम्दु शरीफ कसरत से पढ़ना हाजतों को पूरी करने के लिए उत्त्म इलाज है।
50.
मौत से पहले मौत की तैयारी करो और मौत को हर वक्त सर पर रखों।
51.
खुदा जिसको दोस्त रखता है उसके सर पर बलाओं की बारिश करता है।
52.
कुरआन पाक का देखना सवाब है, पढ़ना सवाब है, अगर एक शब्द पर निगाह पड़े तो दस बदियां दूर हो जायें और दस नेकियां लिखी जायें। आंखों की रोशनी बढ़े और उसकी आंख पर कभी कोई मुसीबत न हो।
53.
काबतुल्लाह की जियारत से एक हजार साल की इबादत का सवाब मिलता है। हज का सवाब अलग है।
54.
आलिम की जियारत और दुरवेशों की दोस्ती से बरकत हासिल होती है।
55.
कमाले ईमान में तीन चीजें है-
(1)
खौफ
(2)
रजा (उम्मीद)
(3)
मुहब्बत
56.
मां-बाप का मुंह देखना औलाद के लिए इबादत है। जो लड़का मां-बाप की कदम बोसी हासिल करता है उसके पिछले गुनाह माफ कर दिए जाते है। ख्वाजा बायजीद बुस्तामी र0 0 ने फरमाया कि मैनं जितने भी मर्तबे पाए अपने मां-बाप से पाये।
57.
जिस किसी ने जो कुछ पाया पीर की खिदमत से पाया। बस मुरीद को चाहिए कि थेड़ा भी पीर के फरमान से आगे न बढ़े और पीर जो कुछ उसको तलकीन (शिक्षा) करे उस पर कान धरे और अमल करे।
58.
जो शख्स आबेदस्त (पाकी) के बाद वुजू में उंगलियो में खिलाल करता रहे उसकी उंगलियां दोजख की आग से महफूज रहेगी।
59.
वुजू में हर अंग को तीन बार धोना सुन्नत है और उसकी कमी या ज्यादती खलल है।
60.
मस्जिद में जाओ तो दायां पैर पहले अन्दर रखो जब वापस आबो तो बायां पैर पहले निकालो। (सुन्न्त)
61.
नापाकी आदमी के बदन में बाल-बाल के नीचे होती है इसलिए गुस्ल (स्नान) के वक्त हर बाल में पानी पहुंचना चाहिए। अगर एक बाल भी सूखा रहे तो पाकी न होगी।
62.
आदमी का मुंह पाक होता है चाहे मोमिन हो या काफिर।
63.
नमाज एक ओहदा (पद) है अगर इस ओहदे की सलामती के साथ जिम्मेदारी पूरी की तो निजात (मुक्ति) है, वरना खुदा के सामने शर्मिन्दगी की वजह से मुंह सामने न होगा।
64.
अरबाबे सुलूक की सही तौबा तीन चीजों से पैदा होती है-
पहला- रोजा रखने की नीयत से कम खाना।
दूसरा- महबूब के जिक्र की गरज से कम बोलना।
तीसरा- इबादत करने की गरज से कम सोना।
65.
तसव्वुक में न रस्में है कि जिनकी पाबन्दी हो सके और न कुछ इल्म है जिनका पढ़ कर हासिल करना आसान हो बल्कि यह मुहब्बत और तरीकत वालों के नजदीक तसव्वुफ खुदा के बन्दों के साथ खुशी व नर्मी से पेश आना है।
66.
आरिफ वही है जिसमें तीन बाते पायी जाएं। पहली-खौफे खुदा, दूसरी-ताजीम, तीसरी हया (लज्जा)।
67.
अगर नमाज के अरकान ठीक तरह से अदा न हुए हो वह पढ़ने वाले के मुंह पर मार दी जाती है। (हदीस)
68.
खुदा-ए-तआला ने किसी इबादत के बारे में इतनी ताकीद नही फरमाई जितनी नमाज के लिए।
69.
जिस कदर दिल लगाकर और सुकून से नमाज अदा करेगा उतना ही खुदा तआला की नजदीकी हासिल होगी।
70.
कब्रस्तान इबरत (नसीहत) की जगह है वहां जाकर हंसना, कहाकहा लगाना, खाना-पीना या कोई और दुनियावी काम नही करना चाहिये।
71.
जो शख्स इबादत नही करता वह हराम रोजी खाता है।



 TO BE CONTINUED..... 

Sunday, 18 June 2017

हजरत इमाम अली -21 RAMADAN SHAHDAT E ALI A.S.


                           بسم الله الرحمان الرحیم 
आपकी विलादत अल्लाह के घर पवित्र काबे शरीफ मे हुआ थी ।कहा जाता है कि आपकी वालदा आपकी विलादत के पहले जब काबे शरीफ के पास गयीँ तो अल्लाह के हुक्म से काबे की दीवार ने आपकी मां को रास्ता दे दिया था
उनके काबे मे तशरीफ लाने के चार दिन बाद 13 रजब को इमाम अली पैदा हुए ।मोहम्मद मुस्तफा स. स. का आपकी ज़िँदगी पर गहरा असर पड़ा था ।चाहे वह मस्जिद हो ,जंग का मैदान हो या फिर आम जगह इमाम अली हर वक्त पैग़म्बरे इस्लाम के साथ रहते थे ।यहाँ तक कि जब रसूले अकरम शबे मेराज पर गये तो अपने बिस्तर पर अली को सुला कर गये थे ।एक गिरोह पैगम्बरे इस्लाम को कत्ल करना चाहता था ,तो अल्लाह ने उन्हेँ शबे मेराज पर एक रात के लिए बुला लिया ।हमलावर गिरोह पहचान ना सके इस लिए अली रसूल के बिस्तर पर ऐसे सोये कि वह लोग पहचान नही सके ।

खुदा कि सिफात के आईनेदार ,तमाम सिफात के मरकज़ यही अली आज से करीब 1352 साल पहले 661 ई. मे माहे रमज़ान मुबारक की 21 वीँ तारिख को कूफे की मस्जिद मे सुबह की नमाज़ के वक्त शहीद कर दिये गये । 19 रमज़ान को सहरी के बाद जब सुबह की नमाज़ अदा की जा रही थी तो नमाज़ियोँ के बीच खड़े कातिल रहमान इब्ने मुलज़िम ने ज़हर से बुझी तलवार से मौला अली पर वार कर दिया ।आप इसके बाद दो दिन तक बिस्तर रहे ।रवायत है कि मोहम्मद मुस्तफा स.स. ने मौला अली को कातिल की पहचान और उसके बारे मे बता दिया था ।19 रमज़ान को नमाज़ के वक्त मौला अली ने ये जानते हुये कि यही कातिल है ,उसे नमाज़ के लिए उठाया था ।अब देखिये अली का इंसाफ ,हमले के बाद नमाज़ियोँ ने इब्ने मुलज़िम को पकड़ लिया था ।मॉला अली ने र्निदेश दिया कि इसके खाने पीने का पूरा ख्याल रखा जाये और चूंकि इसने तलवार से एक वार किया है इस लिए इस पर भी एक ही वार किया जाये ।

हजरत अली के मशहूर कोल (SAYINGS OF IMAM ALI A.S)
मुश्किलों की वजह से चिंता में मत डूबा करो! सिर्फ बहुत अंधियारी रातों में ही सितारे ज्यादा तेज़ चमकते हैं.
एक अच्छी रूह और दयालु ह्रदय को कोई चीज़ इतनी दुःख नहीं पहुंचाती जितना उन लोगों के साथ रहना जो उसे नहीं समझ सकते.
महान व्यक्ति का सबसे अच्छा काम होता है माफ़ कर देना और भुला देना.
ज़िन्दगी में दो तरह के दिन आतें हैं एक जिसमे आप जीतते हैं,और दूसरा वो दिन जो आपके खिलाफ जाता है. तो जब तुम्हारी जीत हो तो घमंड मत करो और जब चीज़ें तुम्हारे खिलाफ जाएँ तो सब्र करो. दोनों ही दिन तुम्हारे लिए परीक्षा हैं.
जब दुनिया आपको घुटनों के बल गिरा देती है तब आप प्रार्थना करने की सर्वोत्तम स्तिथी में होते हैं.
सब्र से जीत तय हो जाती है.
शिष्टाचार अच्छा व्यवहार करने में कुछ खर्च नहीं होता पर यह सबकुछ खरीद सकता है.
सम्मान पूर्वक साफगोई से मना कर देना एक बड़े और झूठे वादे से बेहतर होता है.
इन्सान भी कितना अजीब है की जब वह किसी चीज़ से डरता है तो वह उससे दूर भागता है लेकिन यदि वह अल्लाह से डरता है तो उसके और करीब हो जाता
चुगली करना उसका काम होता है जो अपने आप को बेहतर बनाने में असमर्थ होता है.
तुम्हारे दोस्त भी तीन हैं और दुश्मन भी तीन.
तुम्हारे दोस्त ….एक तुम्हारा दोस्त, तुम्हारे दोस्त का दोस्त और
तुम्हारे दुश्मन का दुश्मन तुम्हारे दुश्मन ….. तुम्हारा दुश्मन, तुम्हारे दोस्त का दुश्मन और तुम्हारे दुश्मन का दोस्त
आँखों के आंसू दिल की सख्ती की वजह से सूख जातें हैं और दिल बार बार गुनाह करने की वजह से सख्त हो जाता है.
तुम्हारा एक रब है फिर भी तुम उसे याद नहीं करते लेकिन उस के कितने बन्दे हैं फिर भी वह तुम्हे नहीं भूलता.
सूरत बगेर सीरत के एसा फूल है जिसमे कांटे ज्यादा हो और खुशबू बिलकुल न हो.
अगर किसी का तरफ आज़माना हो तो उसको ज्यादा इज्जत दो वह आला तरफ हुआ तो आपको और ज्यादा इज्ज़त देगा और कम तरफ हुआ तो खुद को आला समझेगा
कभी भी किसी के पतन को देखकर खुश मत हो क्यों की तुम्हे पता नहीं है भविष्य में तुम्हारे साथ क्या होने वाला है.
खालिक से मांगना शुजाअत है अगर दे तो रहमत और न दे तो हिकमत. मखलूक से मांगना जिल्लत है अगर दे तो एहसान और ना दे तो शर्मिंदगी.
अपनी सोच को पानी के कतरों से भी ज्यादा साफ रखो क्यों की जिस तरह कतरों से दरिया बनता है उसी तरह सोच से इमान बनता है.
आज का इन्सान सिर्फ दोलत को खुशनसीबी समझता है और ये ही उसकी बदनसीबी है.
बात तमीज़ से और एतराज़ दलील से करो क्यों की जबान तो हेवानो में भी होती है मगर वह इल्म और सलीके से महरूम होते हैं .

Tuesday, 13 June 2017

ZAKAT KA BAYAAN- HINDI- ZAKAT KE EHKAM- AHMIYAT IN ISLAM

بسم الله الرحمان الرحیم 

ZAKAT KA BAYAAN:



Al Quran : Zakat mufliso aur mohtajon aur uska kaam karne walon ka haq hai aur jinki diljoyee karni hai aur gulam ki gardan churhane mein aur 

Qarzdaron ke Qarz (ada karne) mein aur Allah ki raah mein aur
musafir ko ye Allah ki taraf se muqarrar kiya hua hai aur
Allah janne wala hikmat wala hai
Surah Tauba (9) , Verse 60



(Aye Rasool’Allah!) Aap Farmao,

Beshaq! Mera Rab Rizq Wasi’a Farmata Hai Apne Bando Me Jiske Liye Chahe
Aur Tangi Farmata Hai Jiske Liye Chahe
Aur Jo Cheez Tum Allah Ki Raah Me Kharch Karo
Uske Badley Aur Dega Aur Woh Sabse Behtar Rizq Dene Wala Hai.



 (Sureh-Saba-34, Ayat 39)





Unki Misaal Jo Apne Maal Allah Ki Raah Me Kharch Karte Hai

Uss Dane Ki Tarah Hai Jisko Saat Baali Nikley Aur Unn Har Baaliyon Me Se Sou-Sou Daane Nikle
Aur Allah Uss Se Bhi Zyada Barhaaye Jiske Liye Chahe Aur Allah Wus’at Wala Ilm Wala Hai.



– (Sureh-Bakrah-02, Ayat 261)





Zakat San 2 Hijri Me Musalmano Par Farz Hui,Islam Me Shuru Se Hi Garibo Ki Madad Karne Par Tawajjoh Dilai Jati Thi. Par Iske Liye Koi Mukammal Qayda Nahi Tha. Daulatmand Jo Bhi Karte Apne Dilse Karte The. ALLAH Subhan Wa Ta'ala Ne Zakat Ko Islam Ka 3ra Rukn Karar Diya Aur Ab Musalmano Par Zakat Farz Hui.










Allah ta’ala farmata hai kamyabi pate hain wo log jo zakat adaa krte hai aur farmata hai jo kuchh tum kharch kroge Allah ta’ala uski jagah aur dega
aur Allah behtar rozi dene wala hai,aur farmata hai jo log bukhal karte hai uske sath jo Allah ne apne fazal se unhe diya wo ye gumaan na kare ki yeh unke liye achha hai balki yeh unke liye bura hai usi cheej ka qayamat ke din unke gale mein TauQ dala jaega jiske sath Bukhal kia hoga.




Zakaat Kin pe Farz hai?



( 1 ) Musalman Hona Yani Kafir Par Zakaat Farz Nahin

( 2 ) Baligh Hona Yani Na Baligh Par Zakaat Farz Nahin

( 3 ) Aaqil Hona Yani Deewane(Pagal) Par Zakaat Farz Nahin

( 4 ) Azaad Hona Yani Laundi Ghulam Par Zakaat Farz Nahin

( 5 ) Maalike Nisaab Hona Yani Jis Ke Paas Nisaab Se Kam Maal Ho Us Par Zakaat Farz Nahin

( 6 ) Pure Taur Par Maalik Ho Yani Is Par Qabza Bhi Ho

Tab Zakaat Farz Hai Warna Nahin

Maslan Kisi Ne Apna Maal Zameen Mein Dafan Kar Diya Aur Jagah Bhool Gaya

Fir Barson Ke Baad Jagah Yaad Aai

Aur Maal Mil Gaya Toh Jab Tak Maal Na Mila Tha Us Zamane Ki Zakaat Wajib Nahin

Kunki Nisaab Ka Maalik Toh Tha Magar Is Par Qabza Nahin Tha

( 7 ) Nisaab Ka Qarz Se Faarigh Hona

Agar Kisi Ke Paas Ek Hazar Rupye Hai

Magar Woh Ek Hazar Ka Maqrooz Bhi  Hai Toh Us Ka Maal Qarz Se Faarigh Nahin

Lihazah Us Par Zakaat Nahin

( 8 ) Nisaab Ka Hajate Asliya Se Faarigh Hona

Hajate Asliyya Yani Aadmi Ko Zindagi Basar Karne Mein Jin Chizon Ki Zarurat Hai

Maslan Apne Rahne Ka Makan Jadey Garmiyon Ke Kapde Gharelu Saman

Yani Khane Pine Ke Bartan Charpaiyan Kursiyan Mezein Chulhe Pankhe Waghairah

In Maalon Mein Zakaat Nahin Kunki Yeh Sab  Malo Saman Hajate Asliyya Se Farigh Nahin Hain

( 9 ) Maale Nami Hona Yani Badhne Wala Maal Hona

Khwah Haqeeqatan Badhne Wala Maal Jaise Maale Tijarat

Aur Charayi Par Chhodey Hue Janwar

Ya Hukman Badhne Wala Maal Ho Jaise Sona Chandi

Ki Yeh Isi Liye Paida Kiye Gae Hain Ki In Se Chizen Kharidi Jayen

Aur Bechi Jayen Taki Nafa-a Hone Se Ye Badhte Rahen

Lihazah Sona chandi Jis Haal Mein Bhi Ho Zewar Ki Shakl Mein Hon

Ya Dafn Hon Har Haal Mein Yeh Maale Nami Hain

Aur Inki Zakaat Nikalna Zaruri Hai

( 10 ) Male Nisaab Par Ek Saal Guzar Jana

Yani Nisaab Pura Hote Hi Zakaat Farz Nahin Hogi

Balki Ek Saal Tak Woh Nisaab Milk Mein Baqi Rahe Toh

Saal Pura Hone Ke Baad Is Ki Zakaat Nikali Jaye




                   

Sone Ka Nisab Sadhe Saat Tolah Hai

Aur Chandi Ka Nisab Sadhe Bawan Tolah Hai

Sone Chandi Main Chaliswan Hissa Zakaat Nikaal Kar Ada Karna Farz Hai

Yeh Zaruri Nahin Ki Sone Ki Zakaat Mein Sona  Hi

Aur Chandi Ki Zakaat Mein Chandi Hi Di Jaye

Balki Yeh Nhi Jayez Hai Ki Bazari Rate Se Sone Chandi Ki Qeemat Laga Kar Rupye Zakaat Mein Dein.

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Pahanne ke Zewraat ki zakat
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 Amr ibn al-'As Radi Allahu Anhu se rivayat hai ki Ek Aurat Rasool-Allah Sal-Allahu Alaihi Wasallam ke pass aayee uski beti bhi uskey saath thi aur uski beti ke haath mein soney (gold) ke do bade bade kangan they Aap Sal-Allahu Alaihi Wasallam ne pucha kya aap in kangano ki zakat dete ho ? usney kaha nahi , Aap Sal-Allahu Alaihi Wasallam ne farmaya kya aapko ye pasand hai ki Qayamat ke din Allah aapko Aag ke kangan pahnaye ye sunkar usne usi waqt kangan utar diye aur aapki khidmat mein pesh kartey huye kaha ki ye Allah aur uskey Rasool-Allah Sal-Allahu Alaihi Wasallam ke liye hai

Sunan Abu Dawud, Jild 1, 1550-Hasan



 Abdullah bin shaddad Radi allahu anhu se rivayat hai ki hum log Aisha Radi allahu anha se paas gaye wo kahne lagi merepaas Rasool-Allah Sal-Allahu alaihi wasallam aaye Aapne mere haath mein chandi ki anguthiyan dekhi aur farmaya , Aisha ye kya hai ? maine arz kiya ki ye maine isliye banwayee hai ki aapke liye banao singar karu , Aap Sal-Allahu alaihi wasallam ne pucha , kya aap inki zakat ada karti ho maine kaha nahi , ya jo ALlah ko manzur tha kaha Aap Sal-Allahu alaihi wasallam ne farmaya ye aapko jahannam mein je jaane ke liye kaafi hai (agar aap zakat nahi dogi to)
Sunan Abu dawud, Jild 1, 1552-Sahih

Abu Hurairah radi allahu anhu se rivayat hai ki Rasool-Allah Sallallahu Alaihi Wasallam ne 
farmaya ki jisey Allah ne maal diya aur usney uski zakaat ada nahi ki to Qayamat ke din uska Maal nihayat zahreeley ganjey saanp ki shakal ikhtriyar kar lega uski aankhon ke pass do siyah(black) nuqtey honge jaise saanp ke hote hain phir wo saanp uskey dono jabdo se usey pakad legaaur kahega ki main tera maal aur khazana hun 
Sahih Bukhari , Jild 2, 1403











Sunday, 4 June 2017

SHAB E QADR KI FAZILAT- ALL ABOUT SHAB E QADR VIRTUES OF SHAB E QADR HINDI ENGLISH


                                   
              بسم الله الرحمان ال رحیم 






             जिस तरह रमज़ानुल मुबारक को दूसरे महीनों पर फजीलत है इसी तरह उसका आखिरी अशरा पहले  दोनों अशरों से बेहतर और ज्यादा बा बरकत है। और लयलतुल कद्र अक्सरो बेश्तर इसी अशरे में होती है। इसलिए रसूलुल्लाह (स.अ.व.) इबादत वगैरह का एहतमाम इस अशरे में और ज्यादा फरमाते थे। कुरआन व हदीस में शबे कद्र की फजीलतें वारिद हुई हैं। इरशादे रब्बानी है- बेशक हमने कुरआन को शबे कद्र में उतारा है। और आपको कुछ मालूम है कि शबे कद्र कैसी चीज है। शबे कद्र हजार महीनों से बेहतर है। इस रात में फरिश्ते और रूहुल कुदुस अपने परवरदिगार के हुक्म से हर अमरे खैर को लेकर उतरते हैं।

 एक रिवायत हजरत अनस (रजि.) से है कि रसूलुल्लाह (स.अ.व.) ने फरमाया जब शबे कद्र होती है तो जिबराईल (अलैयहिस्सलाम) फरिश्तों के झुरमुट में नाजिल होते हैं और हर उस बन्दे के लिए दुआएं रहमत करते हैं जो खड़ा या बैठा अल्लाह के जिक्र व इबादत में मशगूल होता है।

 सही मुस्लिम में हजरत इब्ने उम्र (रजि.) रिवायत करते हैं- नबी करीम (सल.) ने फरमाया- रमज़ान के आखरी अशरे की ताक रातों में शबे कद्र को तलाश किया करो और आखरी अशरे की ताक रातें 21, 23, 25, 27, 29 हैं। हजरत आयशा (रजि.) फरमाती हैं कि मैने अर्ज किया या रसूलल्लाह अगर मुझे मालूम हो जाये कि ये शबे कद्र है तो मैं क्या पढ़ूं। आप (सल.) ने फरमाया- ये दुआ पढ़ा करो ‘अल्लाहुम्मा इन्नका अफुव्वुन तुहिब्बुल अफवा फअफु अन्नी’।






शबे कद्र की कद्र करें 
शबे कद्र की खास अहमियत को समझकर उसकी कद्र करनी चाहिए। उस मुबारक रात में नवाफिल व मुस्तहब्बात और जिकर व अज़कार का खास ऐहतमाम करे। 


माहे रमज़ान  खास अमल

हदीस में है कि रमज़ान में चार चीजों की कसरत किया करो। दो ऐसी है कि तुम उनके जरिए से रब को राज़ी कर सकते हो और दो चीज़े जिनसे तुम बेनियाज़ नहीं हो। पहली दो बातें जिनके जरिए तुम अपने रब को राज़ी करो वे हैं- 1- लाइलाहा इलल्लाह की गवाही देना। 2- अस्तगफार करना। वो दो चीजें जिसने तुम बेनियाज़ नहीं हो ये हैं- हक तआला से जन्नत का सवाल और दोजख से पनाह।


महरूम  न हों

ये रात साल में सिर्फ एक मर्तबा आती है इस रात की बरकतों से जो महरूम रह जाता है यह बड़ी बदसीबी है। सरकारे दो आलम (सल.) ने ऐसे लोगों के बारे में जो इस रात की इबादत से और सआदत से महरूम रह जाता है इरशाद फरमाया कि तुम्हारे पास एक महीना आया जिसमें एक रात है जो शख्स इस रात से महरूम रह जाता है गोया वो हर खैर से महरूम रह जाता है। और उस रात की खैर से वही महरूम रहता है जो हकीकत में महरूम है।

क़द्र वाली रात का महत्वः
(1) इस पवित्र रात में अल्लाह तआला ने क़ुरआन करीम को लोह़ महफूज़ से आकाश दुनिया पर उतारा फिर 23 वर्ष की अवधि में आवयश्कता के अनुसार मुहम्नद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर उतारा गया। जैसा कि अल्लाह तआला का इर्शाद है।
• अल कुरान: “हमने इस (क़ुरआन) को क़द्र वाली रात में अवतरित किया है।……..” – (सुराः ९७ क़द्र)
(2) यह रात अल्लाह तआला के पास बहुत उच्च स्थान रखती है। इसी लिए अल्लाह तआला ने प्रश्न के तरीके से इस रात की महत्वपूर्णता बयान फरमाया है और फिर अल्लाह तआला ने स्वयं ही इस रात की फज़ीलत को बयान फरमाया कि यह एक रात हज़ार महीनों की रात से उत्तम है।
• अल कुरान: “और तुम किया जानो कि क़द्र की रात क्या है ?, क़द्र की रात हज़ार महीनों की रात से ज़्यादा उत्तम है।” – (सुराः ९७ क़द्र)
(3) इस रात में अल्लाह तआला के आदेश से अनगीनत फरिश्ते और जिब्रईल (अलैहि सलाम) आकाश से उतरते है। अल्लाह तआला की रहमतें, अल्लाह की क्षमा ले कर उतरते हैं। इस से भी इस रात की महत्वपूर्णता मालूम होती है। जैसा कि अल्लाह तआला का इर्शाद हैः
• अल कुरान: “फ़रिश्ते और रूह (जिब्रईल अलैहि सलाम) उस में अपने रब्ब की आज्ञा से हर आदेश लेकर उतरते हैं।” – (सुराः ९७ क़द्र)
(4) यह रात बहुत सलामती वाली है। इस रात में अल्लाह की इबादत में ग्रस्त व्यक्ति परेशानियों, ईश्वरीय संकट से सुरक्षित रहते हैं। इस रात की महत्वपूर्ण, विशेषता के बारे में अल्लाह तआला ने क़ुरआन करीम में बयान फरमाया हैः
अल कुरान: “यह रात पूरी की पूरी सलामती है उषाकाल(सुबहा)। ” – (सुराः ९७ क़द्र)
(5) यह रात बहुत ही पवित्र तथा बरकत वाली हैः इस लिए इस रात में अल्लाह की इबादत की जाए, ज़्यादा से ज़्यादा अल्लाह से दुआ की जाए, अल्लाह का फरमान हैः
अल कुरान: “हमने इस (क़ुरआन) को बरकत वाली रात में अवतरित किया है।…….. ” – (सुराः ९७ क़द्र)
(6) इस रात में अल्लाह तआला के आदेश से लोगों के नसीबों (भाग्य) को एक वर्ष के लिए दोबारा लिखा जाता है। इस वर्ष किन लोगों को अल्लाह तआला की रहमतें मिलेंगी ? यह वर्ष अल्लाह की क्षमा का लाभ कौन लोग उठाएंगे ?, इस वर्ष कौन लोग अभागी होंगे ?, किस को इस वर्ष संतान जन्म लेगा और किस की मृत्यु होगी ? तो जो व्यक्ति इस रात को इबादतों में बिताएगा, अल्लाह से दुआ और प्रार्थनाओं में गुज़ारेगा, बेशक उस के लिए यह रात बहुत महत्वपूर्ण होगी । 
(7) यह रात पापों, गुनाहों, गलतियों से मुक्ति और छुटकारे की रात है। मानव अपनी अप्राधों से मुक्ति के लिए अल्लाह से माफी मांगे, अल्लाह बहुत ज़्यादा माफ करने वाला, क्षमा करने वाला है। खास कर इस रात में लम्बी लम्बी नमाज़े पढ़ा जाए, अधिक से अधिक अल्लाह से अपने पापों, गलतियों पर माफी मांगा जाए, अल्लाह तआला बहुत माफ करने वाला, क्षमा करने वाला है। जैसा कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का कथन हैः
• हदीस: “जो व्यक्ति शबे क़द्र में अल्लाह पर विश्वास तथा पुण्य की आशा करते हुए रातों को क़ियाम करेगा, उसके पिछ्ले सम्पूर्ण पाप क्षमा कर दिये जाएंगे।” – (बुखारी तथा मुस्लिम)

यह अल्लाह की ओर से एक प्रदान रात है जिस की महानता के बारे में कुछ बातें बयान की जा चुकी हैं। इसी शबे क़द्र को तलाश ने का आदेश प्रिय रसूल(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपने कथन से दिया है। “जैसा कि आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) वर्णन करती है –
• हदीस: “रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः ” कद्र वाली रात को रमज़ान महीने के अन्तिम दस ताक रातों में तलाशों ” – (बुखारी तथा मुस्लिम)
प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने शबे क़द्र को अन्तिम दस ताक वाली (21, 23, 25,27, 29) रातों में तलाशने का आदेश दिया है। शबे क़द्र के बारे में जितनी भी हदीस की रिवायतें आइ हैं। सब सही बुखारी, सही मुस्लिम और सही सनद से वर्णन हैं। इस लिए हदीस के विद्ववानों ने कहा है कि सब हदीसों को पढ़ने के बाद मालूम होता है कि शबे क़द्र हर वर्ष विभिन्न रातों में आती हैं। कभी 21 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती, तो कभी 23 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती, तो कभी 25 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती, तो कभी 27 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती, तो कभी 29 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती और यही बात सही मालूम होता है। इस लिए हम इन पाँच बेजोड़ वाली रातों में शबे क़द्र को तलाशें और बेशुमार अज्रो सवाब के ह़क़्दार बन जाए। 
 शबे क़द्र की निशानीः
प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इस रात की कुछ निशानी बयान फरमाया है। जिस के माध्यम से इस महत्वपूर्ण रात को पहचाना जा सकता है।
(1) यह रात बहुत रोशनी वाली होगी, आकाश प्रकाशित होगा, इस रात में न तो बहुत गरमी होगी और न ही सर्दी होगी बल्कि वातावरण अच्छा होगा, उचित होगा। जैसा कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने निशानी बतायी है, जिसे सहाबी वासिला बिन अस्क़अ वर्णन करते है कि –
• हदीस: रसूल ने फरमायाः “शबे क़द्र रोशनी वाली रात होती है, न ज़्यादा गर्मी और न ज़्यादा ठंढ़ी और वातावरण संतुलित होता है और सितारे को शैतान के पीछे नही भेजा जाता।” – (तब्रानी)
(2) यह रात बहुत संतुलित वाली रात होगी। वातावरण बहुत अच्छा होगा, न ही गर्मी और न ही ठंडी होगी। हदीस रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) इसी बात को स्पष्ट करती है –
• हदीस: “शबे क़द्र वातावरण संतुलित रात होती है, न ज़्यादा गर्मी और न ज़्यादा ठंढ़ी और उस रात के सुबह का सुर्य जब निकलता है तो लालपन धिमा होता है ।” – (सही- इब्नि खुज़ेमा तथा मुस्नद त़यालसी)
(3) शबे क़द्र के सुबह का सुर्य जब निकलता है, तो रोशनी धिमी होती है, सुर्य के रोशनी में किरण न होता है । जैसा कि उबइ बिन कअब वर्णन करते हैं कि –
• हदीस: “रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ) ने फरमायाः उस रात के सुबह का सुर्य जब निकलता है, तो रोशनी में किरण नही होता है।” – (सही मुस्लिम)
 शबे क़द्र की रात इबादत करे
हक़ीक़त तो यह है कि इन्सान इन रातों की निशानियों का परिचय कर पाए या न कर पाए बस वह अल्लाह की इबादतों, ज़िक्रो-अज़्कार, दुआ और क़ुरआन की तिलावत, क़ुरआन पर गम्भीरता से विचार किरे । इख्लास के साथ, केवल अल्लाह को प्रसन्न करने के लिए अच्छे तरीक़े से अल्लाह की इबादत करे, प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की इताअत करे, और अपनी क्षमता के अनुसार अल्लाह की खूब इबादत करे और शबे क़द्र में यह दुआ अधिक से अधिक करे, अधिक से अधिक अल्लाह से अपने पापों, गलतियों पर माफी मांगा जाए। जैसा कि –
• हदीस: आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) वर्णन करती हैं कि, मैं ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से प्रश्न किया कि यदि मैं क़द्र की रात को पा लूँ तो क्या दुआ करू, तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः “अल्लाहुम्मा इन्नक अफुव्वुन करीमुन, तू हिब्बुल-अफ्व, फअफु अन्नी।” अर्थः ‘ऐ अल्लाह! निःसन्देह तू माफ करने वाला है, माफ करने को पसन्द फरमाता, तू मेरे गुनाहों को माफ कर दे।”

अल्लाह हमें और आप को इस महीने में ज्यादा से ज़्यादा भलाइ के काम, लोगों के कल्याण के काम, अल्लाह की इबादत तथा अराधना की शक्ति प्रदान करे और हमारे गुनाहों, पापों, गलतियों को अपने दया तथा कृपा से क्षमा करे। आमीन

VIRTUES OF SHAB E QADR

Besides fasting and the Taraweeh prayer, the one other thing ramadan is most known about is the Layla tul Qadr. It is the blessed night in the last ten days of Ramadan and every good deed and act of worship committed during this night gets rewarded with an exponential increase, hence, every Muslim tries to catch this night and do acts of righteousness in this night.

AL QURAN: "Verily, We have sent it (this Quran) down in the night of Al-Qadr (Decree).” (97:1)
From this ayah of Quran it is more than clear that perhaps the biggest virtue associated with Laylatul Qadr is that in this night Allah Almighty bestowed Quran upon humanity, which is perhaps the biggest gift that Allah has sent upon humanity. Therefore, if a Muslim is to celebrate the Night for any reason, the biggest one can be perhaps the fact that Allah has sent down His biggest gift upon Prophet Muhammad (PBUH) on this night, hence it ought to be celebrated for this very gift. There can be many ways you can celebrate it, however, the ultimate option would be to start learning to read and understand the Holy Quran from this very blessed night.
AL QURAN“The night of Al-Qadr (Decree) is better than a thousand months (i.e. worshipping Allah in that night is better than worshipping Him a thousand months, i.e. 83 years and 4 months).” (97:3)
Tin this ayah of Quran, Allah Almighty shows the kind of stature and sanctity the Laylatul Qadr enjoys over the rest of the nights of the year. Moreover, the ayah also tells that the reward or the effectiveness of praying in this night is definitely better than prayers in a thousand months. Ergo, every Muslim must try offering as much prayer in this night as possible in order to receive uncountable and extensive reward.
AL HADEESH:“Whoever establishes Salah on the night of Qadr out of sincere faith and hoping for a reward from Allah, all his previous sins will be forgiven.” (Bukhari)
This hadith again emphasizes on the great virtues of Laylatul Qadr. This hadith tells that this Night is the best option for a person to seek forgivness for the previous sins. All a Muslim has to do is be sincere at heart and seek forgiveness from Allah, which He will definitely grant on this night. Therefore, Laylatul Qadr can best be utilized as a means of seeking forgiveness.
There is evidence that the night comes on the last ten days of Ramadan, specifically on the odd numbered nights. In a report by Bukhari, our Prophet said, “Seek it on the odd nights of the last ten days of Ramadan.” In another incident, The Prophet said, “Seek the night in the last ten days, and if any of you is weak, or can’t observe it, he should not miss the remaining seven days.” In yet another incident, Rasulullah stated, “Seek it on the 29th; it may be on the 27th or on the 25th.” Imam Ibn Hajr in his book, ‘Fathul Bari,’ concurred, “I accept the ruling that the night occurs on the odd nights of the last ten days of Ramadhan, namely the 21st, 23rd, 25th, 27th and/or 29th.”
The fact remains that still no one knows for sure which night is the Night of Power, in any given year. It seems that the night shifts and rotates to different nights from one year to another. It may occur on the 29th in one year, while the next year it will be on the 27th, while on the following year it may fall on the 25th. The only concensus is that it will fall in the final 10 days of Ramadhan.

The signs by which Laylat al-Qadr is known

The first sign: it was reported in Saheeh Muslim from the hadeeth of Ubayy ibn Ka’b (may Allaah be pleased with him) that the Prophet (peace and blessings of Allaah be upon him) announced that one of its signs was that when the sun rose on the following morning, it had no (visible) rays.
(Muslim, 762).
The second sign: it was reported from the hadeeth of Ibn ‘Abbaas narrated by Ibn Khuzaimah, and by al-Tayaalisi in his Musnad, with a saheeh isnaad, that the Prophet (peace and blessings of Allaah be upon him) said: “Laylat al-Qadr is a pleasant night, neither hot nor cold, and the following day the sun rises red and weak.”
(Saheeh Ibn Khuzaymah, 2912; Musnad al-Tayaalisi).
The third sign: it was reported by al-Tabaraani with a hasan isnaad from the hadeeth of Waathilah ibn al-Asqa’ (may Allaah be pleased with him) that the Prophet (peace and blessings of Allaah be upon him) said: “Laylat al-Qadr is a bright night, neither hot nor cold, in which no meteors are seen.”
(Narrated by al-Tabaraani in al-Kabeer. See Majma’ al-Zawaa’id, 3/179; Musnad Ahmad).
AL HADEESH:
“O Messenger of Allah! (sallAllahu `alayhi wa sallam),  If I knew which night is Laylat ul-Qadr, what should I say during it?”  Noble  Prophet (SallAllaahu Alayhi Wa sallam) advised her to recite: 
“Allahumma innaka `afuwwun tuh.ibbul `afwa fa`fu `annee ”Translation: O Allah! You are forgiving, and you love forgiveness. So forgive me. (Tirmidhi)
(Wallahu Wa A’alam – Allah SWT is the Best Knower.)









































































































































ख्वाजा गरीब नवाज- मोईनुद्दीन चिश्ती अजमेर

Urdu Shayri by Sahib Ahmedabadi

Sahib Ahmedabadi